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________________ अभिसेयहत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ । पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सीहासणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ; णिसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेई; सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवईए णयरीए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा एवं वयहएवं खलु देवाणुप्पिया ! बारवईए णयरीए दुवालसजोयणआयामाए जाव पच्चक्खं देवलोग-भूयाए सुरग्गि-दीवायणमूले विणासे भविस्सइ; तं जो णं देवाणुप्पिया इच्छइ बारवईए णयरीए राया वा, जुवराया वा, ईसरे, तलवरे, माडंबिए, कोडुबिए, इब्भे, सेट्ठी वा, देवी वा, कुमारो वा, कुमारी वा, अरहओ अरिटणेमिस्स अंतिए मुण्डे जाव पव्वइत्तए, तं णं कण्हे वासुदेवे विसज्जेइ । पच्छाउरस्स वि य से अहापवित्तं वित्तिं अणुजाणइ । महया इड्ढीसक्कार-समुदएण य से णिक्खमणं करेइ । दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसित्ता मम एवं आणत्तियं पच्चप्पिणह । तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति । सूत्र ८ : अर्हन्त प्रभु के मुख से अपने उज्ज्वल भविष्य का यह वृत्तान्त सुनकर कृष्ण वासुदेव आनन्द विभोर हो उठे और हर्षावेश में अपनी भुजा पर ताल ठोकने लगे । फिर जयनाद किया । उसके बाद त्रिपदी का छेदन अर्थात् तीन कदम पीछे हटकर सिंहनाद किया । फिर भगवान अरिष्टनेमि को वंदन नमस्कार करके अपने अभिषेक योग्य (उत्सव के समय जिसका अभिषेक-तिलक किया जाय) प्रधान हस्तिरत्न पर बैठे तथा द्वारका नगरी के मध्य होते हुए अपने राजप्रासाद में आ गये । हाथी से नीचे उत, और फिर जहां बाहर की उपस्थानशाला (राजसभा) थी, जहां अपना सिंहासन था, वहां आये । वे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख • १५० . अन्तकृद्दशा सूत्र : पंचम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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