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165RACHOOL-04.
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वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के यहाँ प्रवेश करते समय यह जान ले कि नववधू के प्रवेश आदि के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, उन भोजों से भिक्षु आदि भोजन लेकर जा रहे हैं, मार्ग में बहुत-से प्राणी यावत् मकड़ी का जाला आदि भी नहीं है तथा वहाँ बहुत-से भिक्षु-ब्राह्मणादि भी नहीं आए हैं, न आएँगे और न आ रहे हैं, लोगों की भीड़ भी बहुत कम है। वहाँ (माँसादि दोष की संभावना भी नहीं है) तब प्रज्ञावान भिक्षु निर्गमन-प्रवेश कर सकता है तथा वहाँ उस साधु के वाचना-पृच्छना आदि धर्मानुयोग चिन्तन में कोई बाधा उपस्थित नहीं होगी, ऐसा जान लेने पर उस प्रकार की पूर्व-संखडि या पश्चात्-संखडि में जाने का विचार कर सकता है।
-IPLAYAT..
PERMISSIBLE FEAST
That bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek alms should find if the feast is being organized on the occasion to welcome a bride (etc.); on the way there are not many beings including cob-webs; not many Shramans etc. have come, are coming and will be coming there; there is only a little crowd of beggars and other people; (and there is no chance of faults like cooking of meat etc.); there a wise ascetic may enter. Also, knowing that there will not be any disturbance in his scholarly activities of listening to a discourse, questioning, contemplating and giving discourse, he may think of going to said types of feasts with the intention of seeking alms.
विवेचनप्रस्तुत सूत्र के पूर्वार्द्ध में संखडि में जाने का निषेध है तथा उत्तरार्ध में अपवाद स्थिति में जाने का विधान है। यह विचारणीय है। ___ इसमें आये ‘मंसादि' शब्द पर विचार करके आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने लिखा हैसंखडि दो प्रकार की होती है-एक सामिष भोजन-प्रधान और दूसरी निरामिष भोजन-प्रधान। सामिष भोजन-प्रधान संखडि में जाने का सर्वथा निषेध है, किन्तु निरामिष भोजन-प्रधान संखडि में भी (१) मार्ग में हरितकाय आदि जीवों की विराधना, (२) अन्य भिक्षुओं आदि की भीड़, तथा (३) स्वाध्याय आदि में विघ्न होता हो तो वैसी संखडि में नहीं जायें किन्तु उक्त दोषों की संभावना नहीं हो तो जा सकता है। इस पर विशेष स्पष्टीकरण करते हुए आचार्यश्री लिखते हैं कि उत्सर्ग मार्ग (-सामान्य परिस्थिति में) किसी भी प्रकार की संखडि में भिक्षा के लिए जाने का विधान नहीं है। उत्तराध्ययन (१/३२), बृहत्कल्प (उ. १), निशीथ (उ. ३) में संखडि में जाने का स्पष्ट निषेध है और उसका प्रायश्चित्त भी है किन्तु अपवाद मार्ग में जिस संखडि में उक्त दोषों
की संभावना नहीं हो तो भिक्षु जा सकता है। पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
( ५३ )
Pindesana : Frist Chapter
PagOETROPENS
HEATRE
TotioCOPYARI
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