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________________ WALAU २०. यदि वह भिक्षु (या भिक्षुणी) यह जान ले कि विशाल भू-भाग में वर्षा बरस रही है। विशाल प्रदेश में अन्धकार रूप धुँध (ओस या कोहरा) दिखायी दे रही है, अथवा महावायु (आँधी या अंधड़ ) से धूल उड़ती दिखायी दे रही है, तिरछे उड़ने वाले या स प्राणी एक साथ बहुत-से मिलकर गिरते दिखाई दे रहे हैं; तो वह ऐसा जानकर सब धर्मोपकरण साथ में लेकर आहार के उद्देश्य से न तो गृहस्थ के घर में प्रवेश करे और न वहाँ से निकले। इसी प्रकार ऐसी स्थिति में और बाहर विहार (मलोत्सर्ग - ) भूमि या विचार ( स्वाध्याय - ) भूमि में भी निष्क्रमण या प्रवेश न करे; न ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करे । 20. If that bhikshu or bhikshuni finds that it is raining in a wide area; a large area has become overcast due to fog or mist; there is a gale or sand-storm; or a large number of airborne insects are falling in clusters; knowing thus he should neither enter nor come out of the house of a layman with all his ascetic equipment. In the same way he should neither enter nor come out of the places meant for relieving himself or for studies; same is applicable for moving about from one village to another. विवेचन- चूर्णि एवं टीका आदि के आधार पर आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने स्पष्टीकरण किया है कि ये दोनों सूत्र जिनकल्पी मुनि की अपेक्षा से हैं। साध्वी जिनकल्पी नहीं होती, अतः इसमें से भिक्खू वा का प्रयोग केवल पारम्परिक रूप में हुआ है। जिनकल्पी या विशिष्ट प्रतिमाधारी मुनि गच्छ से बाहर अकेला रहता है। अतः बाहर कहीं जाने पर उनके उपकरण आदि कोई व्यक्ति उठाकर ले जा सकता है। जबकि स्थविरकल्पी साधु कम से कम दो रहते हैं। अतः वे एक-दूसरे को अपने उपकरण सँभलाकर जा सकते हैं। आगमों में जिनकल्पी मुनि के कम से कम दो उपकरण बताये हैं - ( १ ) मुखवस्त्रिका, (२) रजोहरण । यदि लज्जा परीषह नहीं जीत सके तो एक छोटा चोलपट्टक (धोती) भी रख सकता है जिसका उपयोग केवल नगर में आहार आदि के लिए जाते समय करता है। कोई जिनकल्पी मुनि ५, ७ या अधिक से अधिक १२ उपकरण रख सकते हैं जबकि स्थविरकल्पी मुनि १४ या उससे भी अधिक उपकरण रख सकते हैं। सूत्र २० में आहार के पाठ में ही विहार भूमि - मल-मूत्र त्याग के लिए भी वर्षा आदि में बाहर जाने का निषेध है । इस पर टिप्पणी करते हुए आचार्यश्री ने लिखा है - यह समुच्चय पाठ होने से ऐसा आया है, किन्तु मल-मूत्र त्याग के लिए जाने का कहीं निषेध नहीं है, क्योंकि शास्त्रों पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन ( ४७ ) Pindesana: Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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