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________________ तइओ उद्देसओ | तृतीय उद्देशक LESSON THREE संखडि-गमन में विविध दोष १५. से एगइओ अन्नयरं संखडिं आसित्ता पिबित्ता छड्डिज्जा वा, वमिज्जा वा, भुत्ते वा से णो सम्मं परिणमिज्जा, अण्णयरे वा से दुक्खे रोगायंके समुप्पज्जेज्जा। केवली बूया-आयाणमेयं। ___ इह खलु भिक्खू गाहावईहिं वा गाहावईणीहिं वा परिवायएहिं वा परिवाइयाहिं वा एगझं सद्धिं सुण्डं पाउं भो वइमिस्सं हुरत्था वा उवस्सयं पडिलेहमाणे णो लभिज्जा तमेव उवस्सयं सम्मिस्सीभावमावज्जिज्जा। अन्नमणे वा से मत्ते विपरियासियभूए इत्थिविग्गहे वा किलीबे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो समणा ! अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा राओ वा वियाले वा गामधम्मनियंतियं कटु रहस्सियं मेहुणधम्मपइयारणाए आउट्टामो। तं चेवेगइओ सातिज्जिज्जा। अकरणिज्जं चेयं संखाए, एए आयाणा संति संविज्जमाणा पच्चवाया भवंति। तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए। १५. कदाचित् भिक्षु किसी संखडि में जायेगा तो वहाँ अधिक सरस आहार एवं पेय खाने-पीने से छर्दि-(दस्त लग सकता है) या वमन (कै) हो सकता है अथवा वह आहार भलीभाँति पचेगा नहीं; फलतः (विशूचिका, ज्वर या शूलादि) कोई भयंकर दुःख या रोगातंक पैदा हो सकता है। इसीलिए केवली भगवान ने कहा-“यह (संखडि में जाना) कर्मों के बंधन का कारण है।" (संखडि स्थान में इन दोषों की आशंका भी रहती है)-यहाँ भिक्षु गृहस्थों के, गृहस्थ-पत्नियों अथवा परिव्राजक-परिव्राजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर (भान भूलकर) बाहर निकलकर उपाश्रय को ढूँढ़ने लगेगा, जब वह नहीं मिलेगा, तब उसी (स्थल) को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री-पुरुषों व परिव्राजक-परिव्राजिकाओं के साथ ठहर जायेगा। उनके साथ घुल-मिल जायेगा। वे गृहस्थ, गृहस्थ-पत्नियाँ आदि (नशे में) मत्त एवं अन्यमनस्क होकर अपने आप को भूल जायेंगे, साधु अपने को भूल जायेगा। वह स्त्री शरीर पर या नपुंसक पर आसक्त हो जायेगा। अथवा स्त्रियाँ या नपुंसक उस भिक्षु के पास आकर कहेंगे-“आयुष्मन् श्रमण ! किसी आचारांग सूत्र (भाग २) ( ३८ ) Acharanga Sutra (Part 2) OST DN* * * X Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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