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from the kitchen, or it has been offered with the permission of the donor, or the donor has consumed or eaten a part of it, in such case he or she should accept the food considering it to be
uncontaminated and acceptable. ६. विवेचन-इस सूत्र में सदोष आहार भी दो प्रकार का बताया है-(१) विशुद्ध कोटि, और
(२) अविशुद्ध कोटि। साधु के निमित्त जीव-हिंसा करके बनाया गया आहार अविशुद्ध कोटि का है। यह आधाकर्म, औद्देशिक आदि दोषयुक्त है। दूसरा जो किसी से उधार लेकर, छीनकर, खरीदकर,
दाता की आज्ञा के बिना लेकर दिया जाता है उसे विशुद्ध कोटि का आहार माना जाता है। . र दूसरे प्रकार का आहार विशुद्ध कोटि का इसलिए माना जाता है कि इसमें साधु के निमित्त : प्रत्यक्ष जीव-हिंसा नहीं होती। इसलिए यहाँ दो विकल्प बताये गये हैं। प्रथम कोटि का आहार
किसी भी परिस्थिति में ग्राह्य नहीं है, किन्तु दूसरी कोटि का आहार यदि पुरिषान्तरकृत हो तो ग्राह्य हो जाता है। ___'पुरिसन्तरकडं' शब्द का अभिप्राय है, दाता के अतिरिक्त अन्य पुरुष ने यदि उस आहार,
वस्त्र, भवन, वस्तु आदि का उपयोग कर लिया हो तो। जैसे साधु के निमित्त किसी ने भवन : खरीदा, फिर गृहस्थ ने अपने लिए उसका उपयोग कर लिया हो तो वह पुरिषान्तरकृत होने से : ग्राह्य हो जाता है। . आधाकर्म तथा औद्देशिक आहार नहीं लेने का विधान केवल प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के शासनकाल में होता है, मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के शासन में नहीं।
Elaboration-In this aphorism the faulty food has also been divided into two categories—(1) avishuddha (faulty), and (2) vishuddha : (faultless). The food prepared specifically for an ascetic by a process
involving violence is of faulty category. This involves faults like • aadhakarma or auddeshik (food specifically prepared for ascetics).
The food which is borrowed, snatched, purchased or taken without *. permission of the donor is considered to be faultless food. - The second type of food is considered faultless because it does not
involve direct violence against beings for the benefit of the ascetic. That is why two alternatives have been given here. The first type of food is not acceptable in any condition. But the second type is acceptable if it is purishantarakrit (already used by someone other than the donor). पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
( २१ )
Pindesana : Frist Chapter
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