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________________ बनवाया हो, घर से बाहर निकाला गया हो या न निकाला गया हो; उसे दूसरे ने स्वीकार किया हो या न किया हो; उस आहार में से बहुत-सा खाया हो या न खाया हो; अथवा थोड़ा-सा सेवन किया हो या न किया हो; इस प्रकार के आहार को अप्रासुक और अनेषणीय समझकर प्राप्त होने पर वह ग्रहण न करे । इसी प्रकार बहुत से साधर्मिक साधुओं के लिए बनाया गया हो या एक साधर्मिणी साध्वी के निमित्त से अथवा बहुत-सी साधर्मिणी साध्वियों के निमित्त बनाया गया हो, उस आहार को ग्रहण न करे; यों क्रमशः चार आलापक इसी भाँति कहने चाहिए । [9] वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर जाने कि यह अशनादि आहार बहुत से श्रमणों, माहनों (ब्राह्मणों), अतिथियों, कृपणों ( दरिद्रों), याचकों ( भिखारियों) को गिन-गिनकर उनके निमित्त से प्राणी आदि जीवों का आरंभ समारम्भ करके बनाया हुआ है; उस आहार को ग्रहण न करे । [२] वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रवेश करके जाने कि यह चार प्रकार का आहार बहुत से श्रमणों, माहनों (ब्राह्मणों), अतिथियों, दरिद्रों और याचकों के निमित्त से प्राणादि जीवों का आरंभ समारम्भ करके बनाया गया है ( खरीदा गया है, उधार लिया गया है, बलात् छीना गया है, दूसरे के स्वामित्व का आहार उसकी अनुमति के बिना लिया हुआ है, घर से साधु के स्थान पर ( सामने) लाकर दे रहा है), उस प्रकार का आहार जो स्वयं दाता ने बनाया - ( अपुरिषान्तरकृत) हो, बाहर नहीं निकाला हो, दाता द्वारा अधिकृत न हो, दाता ने उपभोग या सेवन नहीं किया हो, उस अनेषणीय आहार को ग्रहण न करे । यदि साधु इस प्रकार जाने कि यह आहार दूसरे पुरुष द्वारा बनाया हुआ - ( पुरिषान्तरकृत) है, घर से बाहर निकाला गया है, दाता द्वारा अधिकृत है, दाता द्वारा खाया और भोगा हुआ है तो ऐसे आहार को प्रासुक और एषणीय समझकर ग्रहण कर ले। SEARCH FOR FOOD FREE OF AUDDESHIK AND OTHER FAULTS 8. When a bhikshu or bhikshuni while going to the residence of a layman finds that the layman has prepared food for some coreligionist ascetic and the process involves violence of things that breathe, exist, live or have any essence or potential of life; or has purchased or borrowed or forcibly snatched it from others or brought it without the permission of its owner or brought these from his home to the place of stay of the ascetic; he/she should पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन ( १९ ) Pindesana: Frist Chapter Jain Education International For Private Personal Use Only 10 1 www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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