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(३) तीसरी प्रतिमा आचार्य के पास रहकर अध्ययन करना चाहने वाले आहालंदिक साधुओं और आचार्यों की होती है।
(४) चौथी प्रतिमा गच्छ में रहकर अभ्युद्यतविहारी तथा जिनकल्पी बनने के लिए अभ्यास या पूर्व तैयारी करने वालों की होती है।
(५) पाँचवीं, छठी तथा सातवीं प्रतिमा केवल जिनकल्पिक मुनियों की या प्रतिमाधारक साधुओं की होती है। ___ आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने लिखा है-ये भेद वृत्तिकार ने बताये हैं। मूल आगम पाठ में किसी कल्प का उल्लेख नहीं है। सामान्य रूप में प्रत्येक साधु अपनी शक्ति के अनुसार अभिग्रह ग्रहण कर सकता है। (हिन्दी टीका, पृष्ठ १२७०)
Elaboration According to the commentators (Churni and Vritti) these seven pratimas are related to
(1) First pratima is common to all sambhogik ascetics.
(2) Second pratima is observed by sambhogik ascetic within the particular group (gachha) or higher level of asambhogik ascetics.
(3) Third pratima is observed by acharyas and ascetics living with them for study.
(4) Fourth pratima is observed by ascetics living within the group but preparing to be Jinakalpi.
(5) Fifth, sixth and seventh pratimas are exclusively observed by Jinakalpi ascetics or those who are strictly adhering to all pratimas.
Acharya Shri Atmaramji M. writes that these classifications have been mentioned by the commentator (Vritti). The original text of the Agam has no mention of these. Generally speaking every ascetic can accept resolutions according to his capability or strength. (Hindi Tika, p. 1270) पंचविध अवग्रह
२८५. सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे उग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-देविंदोग्गहे १, राओग्गहे २, गाहावइउग्गहे ३, सागारियउग्गहे ४, साधम्मियउग्गहे ५।
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अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
( ३९१ )
Avagraha Pratima : Seventh Chapter
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