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अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
आमुख
+ सप्तम अध्ययन का नाम 'अवग्रह प्रतिमा' है। + 'अवग्रह' का अर्थ है ग्रहण करना। + अवग्रह (उग्गह) शब्द के प्रसंगानुसार अनेक अर्थ होते हैं। जैसे-इन्द्रियों द्वारा होने वाला
सामान्य ज्ञान, अवधारणा-निश्चय, पात्र, साध्वियों का उपकरण विशेष, ग्रहण करने योग्य वस्तु तथा आश्रय, आवास आदि। स्थान विशेष में ठहरने की आज्ञा, अनुज्ञा प्राप्त करना। + छठे अध्ययन में पात्रैषणा का वर्णन है। साधु पात्र आदि सभी उपकरण गृहस्थ की आज्ञा से
ही ग्रहण करता है, क्योंकि उसने सम्पूर्ण अदत्तादान-चोरी का त्याग किया है। इस अध्ययन में स्थान आदि के अवग्रह का विषय मुख्य है। वृत्तिकार ने बताया है-अवग्रह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चार प्रकार का है तथा देवेन्द्र अवग्रह आदि पाँच प्रकार का अभिग्रह है, जिसका कथन इसी अध्ययन के अन्तिम सूत्र में है। इस अध्ययन में 'अवग्रह' शब्द मुख्यतया चार अर्थों में प्रयुक्त हुआ है(१) अनुज्ञापूर्वक ग्रहण करना, (२) ग्रहण करने योग्य वस्तु, (३) जिसके अधीन जो-जो वस्तु है, आवश्यकता होने पर उस वस्तु को उपयोग करने की
आज्ञा माँगना; तथा (४) स्थान या आवासगृह अथवा मर्यादित भूभाग। (वृत्ति पत्रांक ४०२) • इस अध्ययन के दो उद्देशक हैं। प्रथम अध्ययन में स्थान के विषय में तथा दूसरे उद्देशक में
जिस स्थान पर श्रमण ठहरता है, वहाँ किस प्रकार का विवेक रखना-इस विषय का वर्णन
है।
अवग्रह प्रतिमा : सप्तम अध्ययन
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Avagraha Pratima: Seventh Chapter
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