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that there are whole grains mixed in wheat flour or other powdered grains, whole grains and broken grains of rice are roasted or pounded once only, he/she should consider them to be contaminated and unacceptable and reject if offered.
If that bhikshu (male ascetic) or bhikshuni (female ascetic) finds that grains like rice barley and wheat (roasted, powdered or pounded) are free of whole grains and broken grains of rice are roasted or pounded once, twice and thrice he/she should accept them considering them to be uncontaminated and acceptable.
विवेचन - सूत्र 9 में निष्पन्न आहार आदि के विषय में कहा है। इस सूत्र में वनस्पति (औषधि) के विषय में कहा जा रहा है।
वेदों में अन्न के लिए औषधि शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है । जैसे- शान्तिरापः शान्तिरौषधयः- शान्तिः वनस्पतिः - (यजुर्वेद ३६ / १७ ) जल, अन्न, वनस्पति हमें शान्ति प्रदान करें । चूर्णिकार के समय में भी औषधि शब्द गेहूँ, चावल आदि धान्य के अर्थ प्रयुक्त होता रहा है। जैसे - औसहिओ, सचित्ताओ, पडिपुन्नाओ, अखंडिताओ, सस्सियाओ परोहण समत्थाओ ( चूर्णि . ) औषधि अर्थात् अखंड धान शस्य अर्थात् जो उगने से समर्थ हो । आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने औषधि को वनस्पति- फल, जैसे-आँवला, बहेड़ा आदि अर्थ में ग्रहण किया है।
इस सूत्र में औषधि शब्द बीज वाली वनस्पतियाँ, जैसे- धान, गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का आदि अर्थ में ग्रहण किया है। पक जाने पर भी जब तक इनका दाना अखंड रहता है या अच्छी प्रकार भूना, कूटा, पीसा नहीं जाता, वह पुनः उगने समर्थ होने से सचित्त सजीव माना गया । संस्कृत टीका के अनुसार निम्न स्थितियों में ऐसा अन्न अग्राह्य होता है-
( १ ) अनाज का दाना अखण्डित हो ।
(२) उगने की शक्ति नष्ट न हुई हो ।
(३) दाल आदि की तरह द्विदल न किया हुआ हो ।
(४) तिरछा छेदन न हुआ हो ।
(५) अग्नि आदि शस्त्र से परिणत होकर जीवरहित न हुआ हो ।
(६) मूँग आदि की तरह कच्ची फली हो ।
(७) पूरी तरह कूटा, भूँजा या पीसा न गया हो।
(८) गेहूँ, बाजरा, मक्का आदि के कच्चे दाने को आग में एक बार थोड़े से सेंके हो ।
आचारांग सूत्र (भाग २)
( १२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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