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१. कानों में, आँखों में, नाक में या मुँह में आ रहा है। अपितु यतनापूर्वक समभाव के साथ
जल में बहता जाए। ____150. While drifting in the water the ascetic should not even try to dive down or come up. He should also not worry that water is entering his ears, eyes, nose or mouth. He should continue to drift in the water with equanimity and due care. __ १५१. से भिक्खू वा २ उदगंसि पवमाणे दुबलियं पाउणेज्जा, खिप्पामेव उवहिं विगिंचेज वा विसोहेज्ज वा, णो चेव णं साइजेज्जा।
१५१. जल में बहते हुए साधु या साध्वी यदि दुर्बलता का अनुभव करे तो शीघ्र ही अपनी उपधि (उपकरणों) का त्याग कर दे। वह उपधि एवं शरीरादि पर से ममत्व छोड़ . दे, किसी प्रकार की आसक्ति न रखे।
____151. While drifting in the water if the bhikshu or bhikshuni experiences weakness he should abandon his burden
(equipment). He should have no fondness or attachment for his __body and equipment. __ १५२. अह पुणेवं जाणेज्जा पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए। ततो संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्धेण वा काएण दगतीरए चिद्वेज्जा।
१५२. यदि वह यह जाने कि मैं उपधि सहित ही इस जल से पार होकर किनारे पहुँच । जाऊँगा। तो किनारे पर पहुंचकर जब तक शरीर से जल टपकता रहे तथा शरीर गीला रहे, तब तक वह नदी के किनारे पर ही खड़ा रहे। ___152. If he realizes that he will be able to cross the water-body even with his belongings (he should do so). Once he reaches the bank he should remain standing on the river bank as long as water drips and his body is wet.
१५३. से भिक्खू वा २ उदउल्लं वा ससणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा संलिहेज्ज वा णिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा।
अह पुणेवं जाणेज्जा विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे। तहप्पगारं कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज वा जाव पयावेज वा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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