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की विराधना होना सम्भव है। इसीलिए भिक्षुओं के लिए तीर्थंकरादि ने पहले से ही उपदेश किया है कि मुनि अन्य मार्ग के रहते इस प्रकार के भयंकर अटवी मार्ग से विहार करके जाने का विचार न करे। अन्य निरापद मार्ग से ग्रामानुग्राम विहार करे।
DESOLATE AREAS ON THE WAY
136. An itinerant bhikshu or bhikshuni should find if on his way there is a difficult desolate terrain ahead, which can be crossed only in one two, three, four or five days and that too with great hardships. If it is so he should not take that path if other path is available. The omniscient has said that going there is the cause of bondage of karmas. (This is because) if it rains twosensed beings may be created; ascetic-discipline may be violated due to presence of fungus and moss, seeds, vegetation, contaminated water and sand etc. on the path. Therefore Tirthankars (etc.) have said that ascetics should not think of taking such desolate path when an alternative path is available. They should follow the safe alternative path.
विवेचन-विहार की विधि-विहार या गमनागमन करने की सामान्य विधि यह है कि साधु-साध्वी अपने शरीर के सामने की लगभग चार हाथ (गाड़ी के जुए के बराबर) भूमि के देखते हुए दिन में ही चले। जहाँ तक हो सके वह ऐसे मार्ग से गमन करे, जो साफ, सम और जीव-जन्तु, कीचड़, हरियाली, पानी, गड्ढे आदि से रहित हो। विहार करते हुए मार्ग में आने वाले इन पाँच प्रकार के विघ्नों से भी बचने का ध्यान रखना चाहिए
(१) यदि वह मार्ग त्रस जीवों से संकुल हो। (२) मार्ग में त्रस प्राणी, बीज, हरित, उदक और सचित्त मिट्टी आदि हो। (३) उस मार्ग में अनेक देशों के सीमावर्ती दस्युओं, म्लेच्छों, अनार्यों, दुर्बोध्य एवं अधार्मिक लोगों के स्थान पड़ते हों। (४) मार्ग में अराजक या विरोधी शासक वाले देश आदि आते हों। (५) यात्रा-पथ अनेक दिनों में पार किया जा सके, ऐसा लम्बा विकट अटवी मार्ग हो। __ अनजाने या अचानक प्रथम दोनों प्रकार के मार्ग आ जायें तो उन पर यतनापूर्वक चलकर पार करना चाहिए। अन्तिम तीन विघ्नों वाले मार्गों को छोड़कर दूसरे विघ्नरहित मार्ग से विहार करना चाहिए। __ वृत्तिकार ने यतना चार प्रकार की बताई है-(१) द्रव्य-यतना--जीव-जन्तुओं को देखकर चलना, (२) क्षेत्र-यतना-युग मात्र भूमि को देखकर चलना। (३) काल-यतना-अमुक काल में ईर्या : तृतीय अध्ययन
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Irya : Third Chapter
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