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________________ NirainRiRMinximaARAHIMIRRINKINAMANARASOI ONOola. cacanonmohanlalNSAIRAINSAALANAKINDI R-JRA BANANDAKONDAGA (४) अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा २ अहासंथडमेव संथारगं जाएज्जा। तं जहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहा संथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिए वा विहरेज्जा। चउत्था पडिमा। १२१. इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे जाव अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति। १२०. इन (संस्तारक सम्बन्धी) आयतनों-दोषों का परिहार करते हुए साधु को इन चार प्रतिमाओं से संस्तारक की एषणा करनी चाहिए (१) पहली प्रतिमा-साधु या साध्वी अपनी आवश्यक वस्तुओं का नामोल्लेख करके संस्तारक की याचना करे, जैसे-इक्कड नामक तृण, कढिणक नामक तृण, जंतुक नामक तृण, परक (मुंडक) नामक घास, मोरंग नामक घास (या मोर की पाँखों से बना हुआ), सभी प्रकार का तृण, कुश, दूब आदि कूर्चक, वर्वक नामक तृण या चावलों की पराल आदि। साधु किसी भी प्रकार की घास या उससे बना हुआ संस्तारक देखकर गृहस्थ से उसका नाम लेकर कहे-“आयुष्मन् सद्गृहस्थ ! क्या तुम मुझे इन संस्तारक में से अमुक संस्तारक दोगे?" इस प्रकार प्रासुक एवं निर्दोष संस्तारक की स्वयं भी याचना करे अथवा गृहस्थ ही बिना याचना किए दे तो साधु उसे ग्रहण कर ले। यह प्रथम प्रतिमा है। (२) दूसरी प्रतिमा साधु या साध्वी गृह के स्थान में रखे हुए संस्तारक को देखकर उसकी याचना करे कि “हे आयुष्मन् गृहस्थ ! क्या तुम मुझे इन संस्तारकों में से किसी एक संस्तारक को दोगे?" इस प्रकार निर्दोष एवं प्रासुक संस्तारक की स्वयं याचना करे अथवा दाता बिना याचना किये ही दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर उसे ग्रहण करे। यह द्वितीय प्रतिमा है। (३) तीसरी प्रतिमा-वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय में रहना चाहता है, यदि उसी उपाश्रय में इक्कड यावत् पराल आदि के संस्तारक विद्यमान हों तो गृह-स्वामी की आज्ञा लेकर उस संस्तारक को ग्रहण कर ले। यदि उपाश्रय में संस्तारक विद्यमान न हो तो वह उत्कटुक आसन, पद्मासन आदि आसनों में बैठकर रात्रि व्यतीत करे। (परन्तु बाहर से लाकर तृण आदि न बिछाए) यह तीसरी प्रतिमा है। (४) चौथी प्रतिमा-साधु या साध्वी जिस उपाश्रय में ठहरे हों, उस उपाश्रय में पहले से ही संस्तारक बिछा हुआ हो, जैसे कि पत्थर की शिला या लकड़ी का तख्त आदि बिछा हुआ रखा हो तो उस संस्तारक की गृह-स्वामी से आज्ञा लेकर उस पर शयन आदि कर सकता है। यदि वहाँ कोई भी संस्तारक नहीं मिले तो वह उत्कटुक आसन तथा पद्मासन आदि आसनों से बैठकर रात्रि व्यतीत करे। यह चौथी प्रतिमा है। आचारांग सूत्र (भाग २) ( २१६ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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