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the remaining period of the year. However, we will stay in the portion you provide for the period you specify and then depart from there. Any other co-religionist ascetics who happen to come here will also stay in a portion you provide for a period you specify and then depart from there."
शय्यातर आहार-निषेध
११0. से भिक्खू वा २ जस्सुवस्सए संवसेज्जा तस्स पुव्वामेव णामगोत्तं जाणेज्जा तओ पच्छा तस्स गिहे णिमंतेमाणस्स वा अणितेमाणस्स वा असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
११०. साधु-साध्वी जिस गृहस्थ के स्थान में ठहरें, उसका नाम और गोत्र पहले से जान लें। वह साधु को घर पर आहार के लिए निमंत्रित करे या न करे, तब भी उसके पश्चात् उसके घर का अशनादि चतुर्विध आहार अप्रासुक अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे।
CENSURE OF FOOD PROVIDED BY THE HOST
110. The bhikshu or bhikshuni should find in advance the name and clan of the householder at whose place he stays. After that he should not accept any food coming from his house considering it to be faulty and unacceptable, irrespective of whether or not he is invited.
विवेचन-साधु को स्थान देने वाले को जैन परिभाषा में 'शय्यातर' कहा जाता है। शय्या अर्थात् स्थान का दान करके संसार से तिरने वाला 'शय्यातर' कहलाता है। शय्यातर के घर का
आहार-पानी लेने का निषेध है। इसके पीछे कारण यह बताया गया है कि प्रायः साधु-संन्यासी जिसके घर पर ठहरते हैं उसको उनके भोजन आदि की सारी व्यवस्था करनी पड़ती है। इससे उस गृहस्थ पर साधु एक भाररूप बन सकते हैं। जिससे बहुत से व्यक्ति अपना स्थान आदि उनको देने से मना भी कर देते हैं। गृहस्थ पर साधु किसी प्रकार का भार न बने और साधुओं के लिए उसे किसी प्रकार का आरंभ नहीं करना पड़े, यही दृष्टि इस निषेध के पीछे है। (हिन्दी टीका, पृ. १०२६)
Elaboration In Jain terminology the host who provides a place of stay to an ascetic is called 'shayyatar'. One who swims (tar) across the ocean of mundane existence by donating a place of stay (shayya) is 'shayyatar'. Accepting food coming from the house of the shayyatar is
· शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
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Shaiyyaishana : Second Chapter
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