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of all primary and secondary faults. Besides these, that place should also be suitable for meditation, studies and other such essential ascetic activities. That is why finding a fault free and suitable place of stay is considered difficult. __ The commentator (Vritti), explaining 'pindavayesanao', statesWhen an ascetic stays at an upashraya after seeking permission from a householder, out of devotion for the ascetic the householder may prepare food and request the ascetic to accept it. If the ascetic takes that food he is guilty of the fault of accepting food from the host. If he does not accept, the host may get angry and misbehave with or ignore the ascetic. Thus getting a host who is aware of the ascetic praxis is also difficult. (Vritti leaf 368) उपाश्रय ग्रहण में विवेक कैसे रखें ?
१०८. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-खुड्डियाओ खुड्डदुवारियाओ णिययाओ संणिरुद्धाओ भवंति, तहप्पगारे उवस्सए राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पुराहत्थेण पच्छापाएण तओ संजयामेव णिखमेज्ज वा पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं।
जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए वा इंडए वा लट्ठिया वा भिसिया वा णालिया वा चेले वा चिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वा चम्मच्छेयणए वा दुबद्धे दुणिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले, भिक्खू य राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव इंदियजालं वा लूसेज्ज वा पाणाणि वा ४ अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज वा। ___ अह भिक्खूणं पुव्वोवइट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए पुराहत्थेण पच्छापाएण तओ संजयामेव णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा।
१०८. साधु या साध्वी को यदि ऐसा उपाश्रय मिले जो छोटा है या छोटे दरवाजों वाला है तथा नीचा है, जिसके द्वार बन्द रहते हैं तथा चरक आदि परिव्राजकों से रुका हुआ है। किसी कारणवश साधु को इस प्रकार के उपाश्रय में ठहरना पड़े तो वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर निकलता हुआ या बाहर से भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से (या रजोहरण से) टटोलकर देखे, फिर पैर से निकले या प्रवेश करे। केवली भगवान कहते हैं-(अन्यथा) यह कर्मबन्ध का कारण होता है। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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