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• (मौन रहता है) तो उस तपस्वी साधु पर (गृहस्थ को) चोर होने की शंका हो जायेगी जो ॐ वास्तव में चोर नहीं है। इसीलिए तीर्थंकर भगवान ने पहले से ही साधु के लिए यह प्रतिज्ञा * धताई है कि वह गृहस्थ-संसक्त उपाश्रय में नहीं ठहरे।
95. While staying in an inhabited house it may so happen that during the night or other odd hours the householder opens the gate to attend to nature's call. At that time if a thief or his companion enters, the ascetic will have to remain silent. It is against his code to say—a thief is entering the house or not entering, he is hiding or not hiding, he is jumping down or not, he is speaking or not, he has stolen or some other person has stolen, he has stolen things belonging to the householder or someone else, this is the thief and this is his companion, he is the killer or he has committed this crime. And if the ascetic remains silent the householder will have suspicion of the austere ascetic being a thief when in fact he is not. Therefore Tirthankars have framed this code for ascetics that they should neither stay nor do their ascetic activities including meditation in inhabited houses. ___ विवेचन-सूत्र ९२ में आये ‘मोकसमायारे' शब्द का अभिप्राय है भिक्षु आवश्यकता होने पर अपने स्वमूत्र का घाव आदि धोने के लिए तथा औषध रूप में उपयोग कर सकता है। इससे यह
स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी ‘स्वमूत्र चिकित्सा' और 'गौमूत्र चिकित्सा' की जाती थी। : आजकल तो 'स्वमूत्र चिकित्सा' पर काफी अनुसंधान व प्रयोग हो रहे हैं तथा अनेक दुस्साध्य
रोगों का उपचार 'स्वमूत्र चिकित्सा' द्वारा किया जा रहा है। प्राचीन काल में ऋषियों व श्रमणों को भी इस चिकित्सा पद्धति का ज्ञान था यह इससे सूचित होता है।
इन सूत्रों में ‘उवस्सए' शब्द आया है। यहाँ पर इसका अर्थ उपाश्रय के अर्थ में नहीं किन्तु र गृहस्थ के मकान के अर्थ में हुआ है। आचार्य श्री आत्माराम जी म. के कथनानुसार यहाँ
‘उपाश्रय' शब्द का प्रयोग गृहस्थ की भोजनशाला के निकटवर्ती स्थान में हुआ लगता है तथा
अगले सूत्र ९५ के अनुसार यह स्थान गृहस्थ का अन्तरगृह भी हो सकता है। शयन-कक्ष के पास * का स्थान भी हो सकता है। जहाँ से भिक्षु को बाहर जाने-आने में असुविधा भी हो सकती है तथा
गृह-द्वार खुला रहने पर घर में चोर आदि के घुस जाने का भय भी रहता है। इस प्रकार गृहस्थ
के निवासयुक्त घर में रहने पर भिक्षु को अनेक प्रकार के दोष, असुविधाएँ, उपद्रव तथा * अविश्वास आदि का कारण बन सकता है। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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