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2013
neither stay nor do their ascetic activities including meditation in inhabited houses.
९३. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइहिं सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावइस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवे भोयणजाए उवक्खडिए सिया, अह पच्छा भिक्खूपडियाए असणं वा ४ उवक्खडेज्ज वा उवकरेज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकंज्जा भुत्तए वा पायए वा वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्योवदिट्ठा ४ जं णो तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा ३ चेइज्जा ।
९३. गृहस्थों के साथ निवास करते हुए साधु के लिए यह भी एक कर्मबन्ध का कारण हो सकता, जैसे कि गृहस्थ अपने लिए अनेक प्रकार के भोजन तैयार करता है, उसके पश्चात् वह साधुओं के लिए अशनादि चतुर्विध आहार तैयार करने में लगेगा, उसकी सामग्री जुटायेगा। उस आहार को देखकर साधु भी खाने या पीने की इच्छा या उस आहार में आसक्त होकर वहीं रहना चाहेगा। इसलिए भिक्षुओं के लिए तीर्थंकरों ने पहले से यह उपदेश दिया है कि भिक्षु इस प्रकार के उपाश्रय में स्थानादि कार्य नहीं करे।
93. While staying with householders another cause of bondage of karmas may be a householder prepares a variety of food for himself; after that he will start making food for ascetics and collect necessary material. Seeing that food the ascetic could think of staying there with a desire or craving to eat. Therefore, Tirthankars have framed this code for ascetics that they should *** neither stay nor do their ascetic activities including meditation in inhabited houses.
९४. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावइस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिण्णपुव्वाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खुपडियाए । विरूवरूवाइं दारुयाइं भिंदेज्ज वा किणेज्ज वा पामिच्चेज्ज वा दारुणा वा दारुपरिणाम कटु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा पज्जालेज्ज वा, तत्थ भिक्खू अभिकंज्ज्जा आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्योवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेइज्जा।
९४. गृहस्थों के साथ ठहरने पर साधु को यह भी कर्मबन्ध का कारण हो सकता है; उस मकान में रहने वाला गृहस्थ अपने स्वयं के लिए पहले ही अनेक प्रकार के काष्ठईंधन एकत्रित करके रखता है, फिर वह साधु के लिए भी विभिन्न प्रकार के ईंधन आचारांग सूत्र (भाग २)
(१८२ )
Acharanga Sutra (Part 2)
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