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________________ - . - ... संयमी साधुओं के लिए ब्रह्मचर्य-रक्षा की दृष्टि से तीन प्रकार के निवास स्थान वर्जित हैं(१) स्त्री-संसक्त स्थान, (२) पशु-संसक्त स्थान, और (३) नपुंसक-संसक्त स्थान। इन छह सूत्रों में क्रमशः छह प्रकार के निवास स्थानों में रहने का निषेध किया है-(१) स्त्रियों से संसक्त, (२) पशुओं से संसक्त, (३) नपुंसक-संसक्त, (४) क्षुद्र-दुष्ट प्रकृति के मनुष्यों से या नन्हें शिशुओं से संसक्त, (५) हिंन एवं क्षुद्र (कुत्ता, बिल्ली आदि) प्राणियों से संसक्त, एवं (६) सागारिक, परिव्राजक तथा अन्यतीर्थिक-गृहस्थ तथा उसके परिवार से संसक्त उपाश्रय। ___ पशुओं से संसक्त धर्मस्थान में रहने से अनेक दोष लग सकते हैं, जैसे-अविवेकी गृहस्थ यदि पशुओं को भूखे-प्यासे रखता है, समय पर चारा-दाना नहीं देता, पानी नहीं पिलाता या अकस्मात् आग लग गई, तब बंधन में बंधे पशुओं का आर्तनाद साधु से देखा नहीं जायेगा, गृहस्थ की अनुपस्थिति में उसे करुणावश पशुओं के लिए यथायोग्य करना या कहना पड़ सकता है। नपुंसक-संसक्त स्थान तो ब्रह्मचर्य की हानि की दृष्टि से वर्जित है ही। क्षुद्र मनुष्यों से संसक्त मकान में रहने से वे छिद्रान्वेषी, द्वेषी एवं प्रतिकूल होकर साधु को हैरान और बदनाम करते रहेंगे। शिशुओं से युक्त स्थान में रहने से साधु को उन नन्हें बच्चों को देखकर मोह उत्पन्न हो सकता है। उनकी माताएँ साधुओं के पास उन्हें लाएंगी, छोड़ देंगी, तब स्वाध्याय, ध्यान आदि क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होगी। सिंह, सर्प, बाघ, कुत्ता, बिल्ली आदि प्राणियों से युक्त स्थान में रहने से साधु के मन में भय पैदा होगा, कुतूहल उत्पन्न होगा, निद्रा नहीं आयेगी। स्त्रियों से संसक्त स्थान में रहने से ब्रह्मचर्य-हानि की संभावना है। अन्यतीर्थिक साधुओं एवं भिक्षाजीवी परिव्राजकों आदि के साथ रहने में भी संयम में अपरिपक्व साधक उनकी बातों से बहक भी सकता है, संशयग्रस्त हो सकता है। गृहस्थ और उसके परिवार से संसक्त मकान में रहने पर भी अनेक प्रकार के खतरे होने की ॐ संभावना है। जैसे-(१) भिक्षु को अकस्मात् दुःसाध्य-रोग हो जाने पर गृहस्थ उपचार के लिए पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय की हिंसा भी कर सकता है; (२) गृहस्थों के परस्पर लड़ाई-झगड़ों से साधु के चित्त में संक्लेश उत्पन्न हो सकता है; (३) गृहस्थ अपने लिए खाना पकाने के साथ-साथ साधु के लिए भी अग्नि समारम्भ करके भोजन बना सकता है; (४) गृहस्थ के घर में विविध आभूषणों तथा सुन्दर युवतियों को देखकर अपने पूर्व गृहस्थ जीवन के स्मरण से मोहोत्पत्ति तथा कामोत्तेजना भी हो सकती है; तथा (५) कोई पुत्राभिलाषिणी स्त्री उनके साथ सहवास की प्रार्थना भी कर सकती है। आचारांग सूत्र (भाग २) ( १७८ ) Acharanga Sutra (Part 2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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