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८३. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अस्संजए भिक्खूपडियाए ६. उदकपसूताणि कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा 6. हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरइ बहिया वा णिण्णक्खु। तहप्पगारे उवस्सए
अपुरिसंतरकडे जाव णो ठाणं वा ३ चेएज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडे जाव चेएज्जा।
८३. साधु-साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि गृहस्थ, जहाँ पर पानी से उत्पन्न हुए कंद, १. मूल, पत्तों, फूलों या फलों को साधुओं के निमित्त से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा हो रहा है, भीतर से कंद आदि पदार्थों को बाहर निकाल रहा है, ऐसा उपाश्रय
अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उसमें कायोत्सर्गादि क्रियाएँ नहीं करना चाहिए। यदि वह उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित है तो उसका उपयोग कर सकता है।
83. A bhikshu or bhikshuni should find if aquatic bulbous roots, stalks, leaves, flowers or fruits are being shifted from one place to another within the premises or being brought out from the upashraya by a householder. If such upashraya has not already been used by the owner then it should not be used for ascetic activities including meditation. However, if it has already been used by the owner or a householder then it can be used after inspecting and cleaning by the ascetic for his ascetic activities including meditation. ___८४. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा णिस्सेणिं वा उदूखलं वा ठाणाओ ठाणं साहरइ बहिया वा णिण्णक्खु। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव णो ठाणं वा ३ चेएज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडे जाव चेएज्जा ।
८४. वह साधु-साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि साधुओं को उसमें ठहराने की दृष्टि से गृहस्थ चौकी, पट्टे, निसैनी या ऊखल आदि सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा रहा है अथवा कोई पदार्थ बाहर निकाल रहा है, वैसा उपाश्रय अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उसमें कायोत्सर्गादि नहीं करना चाहिए। यदि वह उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित है, तो वहाँ स्थानादि कार्य किया जा सकता है।
84. A bhikshu or bhikshuni should find if stools, platforms, ladders, mortars and other such things are being shifted from one शय्यैषणा : द्वितीय अध्ययन
( १६७ ) Shaiyyaishana : Second Chapter
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