________________
सात प्रकार की पानैषणा
७७. अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा - असंसट्टे हत्थे असंसट्टे मत्ते । तं चैव भाणियव्वं, णवरं चउत्थाए णाणत्तं, से भिक्खू वा २ जाव से जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तं जहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा, अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे, तहेव जाव पडिगाहिज्जा ।
इच्चेयंसि सत्तहं पिंडेसणाणं सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे नो एवं वइज्जा - मिच्छा पडिवण्णा खलु एए भयंतारो, अहमेगे सम्मे पडिवण्णे ।
जे एए भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरति जो य अहमंसि एवं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे वि ते उ जिणाणाए उवट्टिया अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरति ।
एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ।
॥ इक्कारसमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ || पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥
७७. सात पिण्डैषणा के पश्चात् सात पानैषणाएँ हैं । इन सात पानैषणाओं में से प्रथम पानैषणा इस प्रकार है - असंसृष्ट हाथ और असंसृष्ट पात्र । इसी प्रकार (पिण्डेषणाओं की तरह) शेष सब पानैषणाओं का वर्णन समझ लेना चाहिए।
इतना विशेष समझना चाहिए कि चौथी पानैषणा में विविधता का निरूपण है - वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के यहाँ प्रवेश करने पर जिन पानी के प्रकारों के सम्बन्ध में जाने,
इस प्रकार हैं- तिल का धोवन, तुष का धोवन, जौ का धोवन, चावल आदि का पानी ( ओसामण ), कांजी का पानी या शुद्ध उष्ण जल। इनमें से किसी भी प्रकार का पानी ग्रहण करने पर निश्चय ही पश्चात् कर्म नहीं लगता हो तो उस प्रकार के पानी को प्रासुक और एषणीय मानकर ग्रहण कर लेना चाहिए ।
इन सात पिण्डैषणाओं तथा सात पानैषणाओं में से किसी एक प्रतिमा ( प्रतिज्ञा या अभिग्रह) को स्वीकार करने वाला इस प्रकार न कहे कि इन सब साधु-भदन्तों ने मिथ्यारूप से प्रतिमाएँ स्वीकार की हैं, एकमात्र मैंने ही प्रतिमाओं को सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया है । ( अपितु इस प्रकार कहना चाहिए - ) जो ये साधु-भगवन्त इन प्रतिमाओं
पिण्डैषणा: प्रथम अध्ययन
( १५५ )
Pindesana: Frist Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
AN
www.jainelibrary.org