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(१) सातों में से पहली पिण्डैषणा इस प्रकार है- अलिप्त हाथ और अलिप्त पात्र | हाथ और बर्तन किसी प्रकार की सचित्त वस्तु से लिप्त न हो तो उनसे अशन, पानादि चतुर्विध आहार की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। यह पहली पिण्डैषणा है।
(२) दूसरी पिण्डैषणा इस प्रकार है - लिप्त हाथ और लिप्त पात्र । यदि दाता का हाथ और बर्तन दोनों अचित्त वस्तु से लिप्त हैं तब उनसे अशनादि चतुर्विध आहार की स्वयं याचना करे या वह गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। यह दूसरी पिण्डेषणा है।
(३) अहावरा तच्चा पिंडेसणा - इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया सड्ढा भवंति गाहावइ वा जाव कम्मकरी वा । तेसिं च णं अण्णयरेसु विरूवरूवेसु भायणजाएसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा - थालंसि वा पिढरंसि वा सरगंसि वा परगंसि वा वरगंसि वा। अह पुणेवं जाणेज्जा असंसट्टे हत्थे संसट्टे मत्ते, संसट्टे वा हत्थे असंसट्टे मत्ते से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहिए वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ति वा भगिणी ति वा एएण तुमं असंसण हत्थेण संसद्वेण मत्तेण । संसद्वेण वा हत्थेण असंसट्टेण मत्तेण अस्सिं पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा णिहट्टु ओवित्तु दलयाहि । तहप्पगारं भोयणजायं सयं वा जाएज्जा परो वा से देज्जा । फासुयं एसणिज्जं जाव ला संते पडिगाहेज्जा । तच्चा पिंडेसणा ।
(३) तीसरी पिण्डैषणा इस प्रकार है - इस क्षेत्र में पूर्व, पश्चिम आदि चारों दिशाओं में कई श्रद्धालु व्यक्ति रहते हैं, जैसे कि वे गृहपति, गृहपत्नी, यावत् उनके नौकर, नौकरानियाँ आदि। उनके यहाँ अनेक प्रकार के बर्तनों में पहले से भोजन रखा हुआ होता है, जैसे थाल में, तपेली या बटलोई (पिठर) में, सरक ( सरकण्डों से बने सूप आदि) में, परक (बाँस से बनी छबड़ी या टोकरी ) में, वरक (मणि आदि से जटित बहुमूल्य पात्र ) में | साधु यह जाने कि गृहस्थ का हाथ तो लिप्त नहीं है, बर्तन लिप्त है अथवा हाथ लिप्त है, बर्तन अलिप्त है, तब वह पात्रधारी ( स्थविरकल्पी) या पाणिपात्र ( जिनकल्पी) साधु पहले ही उसे देखकर कहे - " आयुष्मन् गृहस्थ या आयुष्मती बहन ! तुम मुझे असंसृष्ट हाथ से संसृष्ट बर्तन से अथवा संसृष्ट हाथ से असंसृष्ट बर्तन से हमारे पात्र में या हाथ पर वस्तु लाकर दो ।" उस प्रकार के भोजन को या तो वह साधु स्वयं माँग ले या फिर बिना माँगे ही गृहस्थ लाकर दे तो उसे प्रासुक एवं एषणीय समझकर मिलने पर ले लेना चाहिए । यह तीसरी पिण्डैषणा है।
पिण्डैषणा: प्रथम अध्ययन
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Pindesana: Frist Chapter
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