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without asking them and giving more to some according to his sweet will, he is committing deceit. He should not do so.
Instead, on getting the food he should first of all take it to the senior ascetics and say—“Long lived Shramans ! Present here are some of my old and new acquaintances, such as-(1) acharya, (2) upadhyaya, (3) pravartak, (4) sthavir, (5) gani, (6) ganadhar, (7) ganavachhedak etc. If you allow me, I will distribute food among these ascetics present here.” If the seniors say—“Long lived Shraman ! Give them according to their need and desire.” Then following the instructions by the acharya, that ascetic should distribute the food to them as per their demands. If they say that give them all the food, he should do so.
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कपटाचरण का निषेध
६९. से एगइओ मणुन्नं भोयणजायं पडिगाहित्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएति मामेयं दाइयं संतं दटु णं सयमाइए तं (जहा-) आयरिए वा जाव गणावच्छेइए वा। णो खलु मे कस्सइ किंचि वि दायव्वं सिया। माइट्टाणं संफासे। णो एवं करिज्जा।
से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा, २ (ता) पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कटु-इमं खलु इमं खलु त्ति आलोएज्जा। णो किंचि वि विणिगृहेज्जा।
से एगइओ अन्नयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता भद्दयं भद्दयं भोच्चा विवण्णं विरसमाहरइ। माइट्ठाणं संफासे। णो एवं करिज्जा।
६९. भिक्षा में सरस स्वादिष्ट आहार प्राप्त होने पर यदि कोई भिक्षु उसे नीरस तुच्छ आहार से ढककर छिपा देता है ताकि दिखाने पर आचार्य, उपाध्याय यावत् गणावच्छेदक आदि मेरे इस आहार को स्वयं न ले लें। मुझे इसमें से किसी को कुछ भी नहीं देना है। ऐसा करने वाला साधु मायास्थान का सेवन करता है। ऐसा छल-कपट नहीं करना चाहिए। ___अपितु जैसा भी आहार प्राप्त हुआ हो वह साधु उस आहार को लेकर आचार्य आदि के पास जाए और वहाँ जाते ही सबसे पहले झोली खोलकर पात्र को हाथ में ऊपर उठाकर “इस पात्र में यह है, इसमें यह है", (इस प्रकार एक-एक पदार्थ) उन्हें बता दे। थोड़ा-सा आहार भी छिपाकर नहीं रखना चाहिए। आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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