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________________ तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा गेण्हेज्जा, परो वा से दिज्जा, फासुयं लाभे संते पडिगाहेज्जा। ४३. से भिक्खू वा २ से जं पुण पाणगं जाणेज्जा-अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए उद्धटु उद्धटु णिक्खित्ते सिया। अस्संजए भिक्खुपडियाए उदउल्लेण वा ससणिद्धेण वा सकसाएण वा मत्तेण वा सीओदयेण वा संभोइत्ता आहटु दलएज्जा। तहप्पगारं पाणगजायं अफासुर्य लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ___ एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए सामग्गियं। ॥ सत्तमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥ ४२. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर में पानी ग्रहण करने के लिए प्रविष्ट होने पर अगर इस प्रकार का पानी जाने, जैसे कि (क) तिलों का धोया हुआ उदक, (ख) तुषोदक, (ग) यवोदक, (घ) उबले हुए चावलों का ओसामण (मांड), (ङ) कांजी का बर्तन धोया हुआ जल, (च) प्रासुक उष्ण जल अथवा इसी प्रकार का अन्य द्राक्षा का धोया हुआ पानी (धोवन) इत्यादि विभिन्न जलों को पहले देखकर ही साधु गृहस्थ से कहे-“आयुष्मन् गृहस्थ या आयुष्मती बहन ! क्या मुझे इस (धोवन पानी) में से किसी (पानक) को दो?" तब वह गृहस्थ यदि कहे कि “आयुष्मन् श्रमण ! जल पात्र में रखे हुए पानी को अपने व पात्र से आप स्वयं उलीचकर या नितारकर पानी ले ले।" गृहस्थ के इस प्रकार कहने पर साधु उस पानी को स्वयं ले ले अथवा गृहस्थ स्वयं देता हो तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। ४३. साधु या साध्वी गृहस्थ के घर पानी के लिए प्रवेश करने पर पानी के सम्बन्ध में यदि जाने कि गृहस्थ ने प्रासुक जल को सचित्त पृथ्वी पर, संस्निग्ध पृथ्वी पर, मकड़ी के जालों से युक्त पदार्थ पर रखा है अथवा सचित्त पदार्थ से युक्त बर्तन से निकालकर रखा है। गृहस्थ सचित्त जल टपकते हुए अथवा गीले हाथों से भिक्षु को देने के उद्देश्य से सचित्त पृथ्वी आदि से युक्त बर्तन से या प्रासुक जल के साथ सचित्त (शीतल) उदक मिलाकर लाकर दे रहा है, तो उस प्रकार के जल को अप्रासुक मानकर ग्रहण न करे। a यह (आहार-पानी की गवेषणा का विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी की (ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि आचार सम्बन्धी) समग्रता है। DISCRETION OF ACCEPTING DRINKS ___42. A bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek water should find if any of these types of पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन ( ९७ ) Pindesana : Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007647
Book TitleAgam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2000
Total Pages636
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size20 MB
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