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In the same way he should refrain from taking any food placed on fire-bodied beings considering it to be faulty and unacceptable. The omniscient has said that that is a cause of bondage of karmas. This is because, the layman, will lit a fire, blow air to increase its intensity, reduce fuel to reduce its intensity, take down the pot from the fire and bring the food and offer it to the ascetic. Therefore the omniscient preaches that the ascetic should refrain from taking any food placed on sachit (contaminated with living organisms) earth, water, fire (etc.), even when offered, considering it to be faulty and unacceptable.
वायुकाय-हिंसाजनित आहार का निषेध
(३) से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा-असणं वा ४ अच्चुसिणं अस्संजए भिक्खु पडियाए सुप्पेण वा विहुयणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए वा + साहाभंगेण वा पेहुणेण वा पेहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमेज्ज वा वीएज्जा वा।
से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो त्ति वा भगिणि ति वा मा एतं तुमं असणं वा ४ २. अच्चुसिणं सुप्पेण वा जाव फुमाहि वा वीयाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । ___ से सेवं वदंतस्स परो सुप्पेण वा जाव वीइत्ता आहटु दलएज्जा, तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा।
(३) साधु या साध्वी को भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर यह पता चले कि साधु को देने के लिए यह अति उष्ण आहार आदि गृहस्थ सूप से, पंखे से, ताड़ पत्र, खजूर आदि के पत्ते, शाखा, शाखा खण्ड से, मोर के पंख से अथवा उससे बने हुए पंख से, वस्त्र से, वस्त्र के पल्ले से, हाथ से या मुँह से, फूंक मारकर पंखे आदि से हवा करके ठंडा करके देने वाला है।
तब भिक्षु पहले गृहस्थ से कहे-“आयुष्मन् गृहस्थ। या आयुष्मती भगिनी ! तुम इस अत्यन्त गर्म आहार को सूप, पंखे हाथ-मुँह आदि से फूंक मत मारो और न ही हवा करके ठंडा करो। अगर तुम मुझे देना चाहते हो तो, ऐसे ही दे दो।"
ऐसा कहने पर भी वह गृहस्थ न माने और उस अतिष्ण आहार को सूप, पंखे आदि से हवा देकर ठंडा करके देने लगे तो वैसा आहार अप्रासुक समझकर ग्रहण न करे। पिण्डैषणा : प्रथम अध्ययन
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Pindesana : Frist Chapter
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