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पृथ्वी षट्काय जीव- प्रतिष्ठित आहार ग्रहण निषेध
४०. (१) से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ पुढविक्कायपइट्ठियं । तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा ।
४०. (१) भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करते समय यदि यह जाने कि यह अशनादि चतुर्विध आहार - पृथ्वीकाय (संचित्त मिट्टी आदि) पर रखा हुआ है; तो इस प्रकार के आहार को अप्रासुक और अनेषणीय समझकर ग्रहण न करे ।
CENSURE OF FOOD PLACED ON EARTH-BODIED BEINGS
40. (1) A bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek alms should find if the food is placed on earth-bodied beings (sachit earth etc.). If it is so, he should refrain from taking any such food considering it to be faulty and unacceptable.
अप्काय- अग्निकाय प्रतिष्ठित आहार ग्रहण निषेध
(२) से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्ठियं तह चेव ।
एवं अगणिकायपइट्ठियं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । केवली बूया - आयाणमेयं । अस्संजए भिक्खुपडियाए अगणिं उस्सिक्किय णिस्सिक्किय ओहरिय आहट्टु दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुव्ववदिट्ठा ४ जाव णो पडिगाहेज्जा ।
(२) वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि अशनादि आहार अप्काय (सचित्त जल आदि) पर रखा हुआ है, उसे भी स्वीकार न करे।
इसी प्रकार अग्निकाय पर रखा हुआ अशनादि आहार को अप्रासुक तथा अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे। केवली भगवान कहते हैं - यह कर्मों के बंध का कारण है; क्योंकि गृहस्थ साधु के लिए अग्नि जलाकर, हवा देकर, विशेष प्रज्वलित करके या प्रज्वलित आग में से ईंधन निकालकर, आग पर रखे हुए बर्तन को उतारकर, आहार लाकर दे देगा, इसीलिए तीर्थंकर भगवान ने यही उपदेश दिया है कि वे सचित्त - पृथ्वी, जल, अग्नि आदि पर प्रतिष्ठित आहार को अप्रासुक और अनेषणीय मानकर प्राप्त होने पर ग्रहण न करे।
CENSURE OF FOOD PLACED ON WATER OR FIRE-BODIED BEINGS
(2) If he finds that the food is placed on water-bodied beings, then also he should refrain from taking it.
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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