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दें।'' उस आहार का विभाजन करता हुआ वह साधु अपने लिए जल्दी-जल्दी अच्छा-अच्छा प्रचुर मात्रा में वर्णादि गुणों से युक्त सरस साग, स्वादिष्ट - स्वादिष्ट, मनोज्ञ-मनोज्ञ, स्निग्ध-स्निग्ध आहार और उनके लिए रूखा सूखा आहार न रखे, अपितु उस आहार में अमूर्च्छित, अगृद्ध, निरपेक्ष एवं अनासक्त होकर सबके लिए एकदम समान विभाग करे ।
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(घ) यदि सम विभाग करते हुए उस साधु को कोई शाक्यादि भिक्षु यों कहे कि 'आयुष्मन् श्रमण ! आप विभाग मत करें। हम सब एक होकर यह आहार करके जल पी लेंगे।” तव वह भिक्षु उनके साथ आहार करता हुआ आहार-विषयक मूर्च्छा, गृद्धि और आसक्ति आदि का त्यागकर अपने लिए प्रचुर मात्रा में सुन्दर, सरस आदि आहार आदि का विचार न करता हुआ समान रूप से उस आहार आदि का भक्षण करे ।
(ङ) वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के यहाँ प्रवेश करने से पूर्व यदि यह जाने कि वहाँ शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, ग्रामपिण्डोलक या अतिथि आदि पहले से प्रविष्ट हैं, तो यह देख वह उन्हें लाँघकर उस गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे और न ही दाता से आहारादि की याचना करे। परन्तु उन्हें देखकर वह एकान्त स्थान में चला जाए, वहाँ जाकर कोई न आए जाए तथा न देखे, इस प्रकार से खड़ा रहे ।
जब वह यह जान ले कि गृहस्थ ने श्रमणादि को आहार देने से मना कर दिया है, अथवा उन्हें दे दिया है और वे उस घर से चले गये हैं; तब संयमी साधु स्वयं उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे, अथवा आहारादि की याचना करे।
यही उस भिक्षु अथवा भिक्षुणी के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि आचार की - सम्पूर्णता है।
समग्रता
PROCEDURE IN PRESENCE OF OTHER SEEKERS
30. (a) That bhikshu or bhikshuni while entering the house of a layman in order to seek alms should find if before him many Shramans, Brahmins, beggars, destitute and guests have already entered that house. If so, he should not stand before them or near the gate from which they will come out. Instead, he should go to some solitary place where no one frequents and stand inconspicuously. Seeing him alone at that place the host brings food and gives him with these words "Long lived Shraman! This food I am giving you is meant for all the guests present. You may divide it among all and eat as you like."
आचारांग सूत्र (भाग २)
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Acharanga Sutra (Part 2)
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