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________________ * विवेचन यहाँ 'लोक' शब्द अग्निकाय का बोधक है। तत्कालीन धर्म-परम्पराओं मे जल को, तथा अग्नि को देवता मानकर पूजा तो जाता था, किन्तु उनकी हिंसा के सम्बन्ध में कोई विचार नहीं किया गया था। जल से शुद्धि और पंचाग्नि तप आदि से सिद्धि मानकर इनका पयोग/उपयोग किया जाता था। भगवान महावीर ने अहिंसा की दृष्टि से इन दोनों को सजीव मानकर उनकी हिंसा का निषेध किया है। आचार्य शीलांक का कथन है-अग्नि में प्रकाश व उष्णता का गुण है तथा अग्नि वायु के बिना जीवित नहीं रह सकती। स्नेह, काष्ट आदि का आहार लेकर बढ़ती है, आहार के अभाव में घटती है-यह सब उसकी सजीवता के स्पष्ट लक्षण हैं। ___ अग्निकाय को 'दीर्घलोक शस्त्र' कहा है। दीर्घलोक का अर्थ है-वनस्पति। इसे दीर्घलोक कहने के तीन कारण हैं-(१) पाँच स्थावर जीवों में चार की अवगाहना अंगुल का असंख्यातवाँ भाग बताई गयी है जबकि वनस्पति की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन से भी अधिक है।२ (२) वनस्पति का क्षेत्र भी अत्यन्त व्यापक है तथा उसकी (३) कायस्थिति (उसी काय में बार-बार जन्म-मरण करना) भी दीर्घ है। इसलिए वनस्पति को आगमों में 'दीर्घलोक' कहा है। अग्नि उसका शस्त्र है। दीर्घलोक शस्त्र का एक अर्थ यह भी है कि अग्नि सबसे तीक्ष्ण और प्रचंड शस्त्र है। उत्तराध्ययन में कहा है-नत्थि जोइ समे सत्थे तम्हा जोइ न दीवए। १५/१२) अग्नि के समान अन्य कोई तीक्ष्ण शस्त्र नहीं है। बड़े-बड़े विशाल बीहड़ वनों को वह कुछ क्षणों में ही भस्मसात् कर देती है। अग्नि वडवानल के रूप में समुद्र में भी छिपी रहती है। अशस्त्र शब्द 'संयम' के अर्थ में प्रयुक्त है। असंयम को भाव शस्त्र बताया है। अतः उसका विरोधी संयम-अ-शस्त्र अर्थात् जीव मात्र का रक्षक है। इस कथन का भाव है-जो हिंसा को जानता है, वही अहिंसा को जानता है, जो अहिंसा को जानता है वही हिंसा को भी जानता है। Elaboration—Here the word lok indicates fire-bodied beings. In the religious traditions of those days water and fire were worshipped as gods but no thought was given to acts of violence against them. Considering water to be the means of purification and penance using five types of fire that of super-natural attainments, these two were in popular use. Bhagavan Mahavir, from his ahimsa viewpoint, accepted them as living things and proscribed violence against them. १. न विणा वाउयाएणं अगणिकाए उज्जलति-भगवती, श. १६, उ. १, सूत्र ५ (अंगसुत्ताणि) २. प्रज्ञापना अवगाहना पद। विस्तृत विवेचन के लिए देखें। आचारांग हिन्दी टीका (आ. आत्माराम जी म.). पृ.१२४-१२५ ॐ शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन Shastra Parijna : Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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