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१३. (पृथ्वीकाय के समारंभ) में भगवान ने परिज्ञा बताई है।
कोई व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा-सम्मान और. पूजा के लिए, जन्म, मरण और a मुक्ति के लिए, दुःख का प्रतीकार करने के लिए, वह स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से करवाता है, तथा करने वालों का अनुमोदन करता है।
वह (हिंसा) उसके अहित के लिए होती है। वह हिंसा उसकी अबोधि का कारण होती है (अर्थात् वह चिरकाल तक ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि और चारित्र-बोधि से वंचित रहता है)। REASONS FOR VIOLENCE
13. Bhagavan has revealed the truth about this (violence against earth-bodied beings).
When a person, for the sake of his life; praise, prestige and worship; birth, death and liberation; and removal of sorrows, himself acts sinfully, causes others to act sinfully, or approves of others acting sinfully against earth-bodied beings. ____ That (sinful act) is detrimental to him. That is the cause of
his ignorance (meaning that he always remains deprived of the awareness of right knowledge, perception or faith, and conduct).
१४. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए।
सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा इहमेगेसिं णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए।
इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ।
१४. वह (संयमी साधक हिंसा के दुष्परिणामों को) अच्छी तरह समझता हुआ, * आदानीय-संयम-साधना में तत्पर हो जाता है।
(कुछ मनुष्यों को) भगवान के या अनगार मुनियों के द्वारा (धर्म) सुनकर यह ज्ञात हो * जाता है कि “यह जीव-हिंसा ग्रन्थि (कर्मबंध का कारण) है, यह मोह (मूढ़ता) है, यह * मृत्यु है और यही नरक है।"
(फिर भी) जो मनुष्य (सुख-सुविधा आदि में) आसक्त होता है वह नाना प्रकार के * शस्त्रों से पृथ्वी-सम्बन्धी हिंसा-क्रिया में संलग्न होकर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन
( २१ ) Shastra Pariyna : Frist Chapter
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