________________
violence to some being. (5) If it is delivered only for the sake of obtaining alms.
The qualities of a preacher—This aphorism states seven qualities of a preacher-(1) Impartiality, (2) Right perception, (3) All enveloping compassion, (4) Capacity of independent analysis, (5) Knowledge of the Agams, (6) Ability to contemplate, and (7) Avoidance of insolence.
१९९. तम्हा संगं ति पासहा। गंथेहिं गढिआ णरा विसण्णा कामविप्पिया। तम्हा लूहाओ णो परिवित्तसेज्जा।
जस्सिमे आरंभा सव्वओ सव्वताए सुपरिण्णाय भवंति, जस्सिमे लूसिणो णो परिवित्तसंति, से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च। एस तिउट्टे वियाहिए।
त्ति बेमि। कायस्स विओवाए एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुणी। अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठी कालोवणीए कंखेज्ज कालं जाव सरीरभेउ। त्ति बेमि।
. ॥ पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥
॥ धुयं : छट्टमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ १९९. विषय-कषायों को शान्त करने के लिए आसक्ति को देखो।
ग्रन्थियों (स्वजन-धन आदि) में गृद्ध और विषयों में निमग्न बने हुए मनुष्य कामों से बाधित होते हैं।
इसलिए मुनि रूक्ष-(संयम) से उद्विग्न न हो। जिन आरम्भों से हिंसक वृत्ति वाले मनुष्य उद्विग्न नहीं होते, ज्ञानी मुनि उन सब आरम्भों को सब प्रकार से त्याग देते हैं। वे ही मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन करने वाले हैं। ऐसा मुनि त्रोटक-संसार-शृंखला को तोड़ने वाला कहलाता है।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
शरीर के व्यापात को (मृत्यु के समय की पीड़ा को) ही संग्रामशीर्ष (युद्ध का अग्रिम मोर्चा) कहा गया है। जो मुनि उसमें पराजित नहीं होता, वही संसार का पारगामी होता है।
आहत होने पर भी मुनि उद्विग्न नहीं होता, अपितु फलक की भाँति रहता है। मृत्युकाल निकट आने पर (विधिवत् संलेखना से शरीर और कषाय को कृश बनाकर धुत : छठा अध्ययन
( ३६१ )
Dhut : Sixth Chapter
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org