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६. अपरिण्णायकम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा 8 अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ सहेति। अणेगरूबाओ जोणीओ @ संधेइ, विरूवरूवे फासे य पडिसंवेदेइ।
७. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। ___ इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए * दुक्खपडिघायहेउं।
६. जो पुरुष अपरिज्ञातकर्मा है (क्रिया के स्वरूप से अनभिज्ञ है तथा उसका त्याग नहीं कर पाता है) वह इन दिशाओं व अनुदिशाओं में अनुसंचरण/परिभ्रमण करता है। (अपने कर्मों के साथ) सब दिशाओं/अनुदिशाओं में जाता है। अनेक प्रकार की जीव-योनियों को प्राप्त होता है। वहाँ विविध प्रकार के स्पर्शों (सुख-दुःख के आघातों) का प्रतिसंवेदन-अनुभव करता है।
७. (कर्म-बन्धन के कारणों के विषय में) भगवान ने परिज्ञा का उपदेश किया है।
(अनेक मनुष्य मुख्य रूप में इन हेतुओं से हिंसा करते हैं)_ (१) (सभी को जीवन प्रिय है, अतः वह) अपने जीवन की रक्षा के लिए (धन संग्रह, औषधि आदि द्रव्यों का सेवन करता है),
(२) प्रशंसा व यंश के लिए (मल्ल-युद्ध जैसी प्रतियोगिता आदि में विजय पाने में प्रयत्नरत होता है),
(३) सम्मान की प्राप्ति के लिए (धन-सत्ता आदि जुटाता है), (४) पूजा आदि पाने के लिए (युद्ध व अन्य हिंसक प्रतिस्पर्धाएँ करता है), (५) जन्म (सन्तान आदि के जन्म पर अथवा स्वयं के जन्म) निमित्त से, (६) मरण (मृत्यु सम्बन्धी कारणों व प्रसंगों पर, जैसे-पिंडदान आदि), (७) मुक्ति की प्रेरणा या लालसा से (देवी आदि के समक्ष पशु-बलि आदि देता है),
(८) दुःख के प्रतीकार हेतु (रोग, आतंक, उपद्रव आदि मिटाने के लिए अनेक प्रकार के हिंसक प्रयोग करता है)।
6. A person who is aparijnat-karma (who is ignorant of the concept of action and is unable to renounce it) continues to transmigrate in all these directions and intermediate directions. He goes into all these directions (with his karmas). He is born into numerous dimensions (as different forms of beings). There
he experiences varieties of touch (pleasures and pains). 2 आचासंग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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