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• अनाकर्षक-अनिष्टकर हैं, वे 'अहारी' परीषह कहलाते हैं। धूतवादी मुनि को इन चारों प्रकार के परीषहों को समभावपूर्वक सहना चाहिए।
'विसोत्तिया' शब्द प्रसंगानुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता रहा है। जैसे-प्रतिकूल गति, विमार्ग गमन, मन का विमार्ग में गमन, अपध्यान, दुष्ट चिन्तन और शंका आदि। यहाँ प्रसंगवश 1 "विसोत्तिय' शब्द के शंका, दुष्टचिन्तन, अपध्यान या मन का कुमार्गगमन-ये अर्थ हो सकते हैं। से परीषह या उपसर्ग के आ पड़ने पर मन में जो आर्त-रौद्रध्यान आ जाते हैं, या विरोधी के प्रति
दुश्चिन्तन होने लगता है, अथवा मन चंचल और क्षुब्ध होकर असंयम में भागने लगता है, मन " में कुशंका पैदा हो जाती है कि मैं जो परीषह और उपसर्ग के कष्ट सह रहा हूँ, इसका शुभ फल
मिलेगा या नहीं? इत्यादि समस्त प्रकार के भाव-(विस्रोतसिका) को धूतवादी सम्यग्दर्शी मुनि * त्याग दे।
___ 'अणागमणधम्मिणो'-जो साधक सर्वविरति चारित्र की प्रतिज्ञा ग्रहण करके जीवन पर्यन्त उसका पालन करते हैं, परीषहों और उपसर्गों से हारकर पुनः गृहस्थवास की ओर नहीं लौटते; वे-'अनागमनधर्मी' कहलाते हैं। ___‘एस उत्तरवादे ' का तात्पर्य है पूर्व में जो चार सूत्र बताये हैं-(१) समस्त परीषहों और * उपसर्गों के आने पर समभाव से सहना, (२) मुनिधर्म से विचलित होकर पुनः स्वजनों के प्रति 2 आसक्तिवश गृहवास में न लौटना, (३) काम-भोगों में जरा भी आसक्त न होना, (४) तप, संयम
और तितिक्षा में दृढ़ रहना; यह उत्तरवाद है। यही मानवों के लिए उत्कृष्ट-धूतवाद है।
Elaboration–The signs of the cleansed great sage who gets initiated as an ascetic follower of scriptural conduct and adheres to it all his life, are mentioned in this aphorism. In brief they are as follows
(1) He uses the ascetic equipment carefully and without any attachment.
(2) He endures afflictions. (3) He avoids any or all stupor.
(4) He remains uninvolved in and detached with carnal pleasures and kin-folk.
(5) He is steadfast in austerities, discipline and ascetic conduct.
(6) He is free of all mundane desires. * आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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