________________
बीओ उद्देसओ
द्वितीय उद्देशक
सर्वसंग परित्यागी धुत का स्वरूप
१८४. आतुरं लोगमायाए चइत्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरंसि । वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं अहा तहा, अहेगे तमचाइ कुसीला ।
कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्ते वा अपरिमाणाए भेदे |
एवं से अंतराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं, अवितिण्णा चेए ।
*
वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्ज । अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए ।
LESSON TWO
१८४. आतुर लोक को भलीभाँति जानकर, पूर्व संयोग को त्यागकर, उपशम को प्राप्त कर, ब्रह्मचर्य में वास करकें, वसु - ( वीतराग धर्म) अथवा अनवसु - ( सराग संयम धर्म श्रावकधर्म) धर्म को यथार्थ रूप से जानकर भी कुछ कुशील (मलि. चारित्र वाले ) व्यक्ति उस धर्म का पालन करने में समर्थ नहीं होते ।
वे वस्त्र, पात्र, कम्बल एवं पाद- प्रोंछन को छोड़कर, दुःसह परीषहों को नहीं सह सकने के कारण ( मुनिधर्म का त्याग कर देते हैं ) ।
विविध प्रकार के काम-भोगों से ममत्व रखने वाला व्यक्ति मुनिधर्म से भ्रष्ट हो जाता है । फिर तत्काल (प्रव्रज्या परित्याग के बाद ही ) अन्तर्मुहूर्त में या किसी भी समय में उसका शरीर छूट सकता है - ( आत्मा और शरीर का भेद न चाहते हुए भी भेद हो सकता है) ।
Jain Education International
इस प्रकार वे विघ्नों और द्वन्द्वों से युक्त काम भोगों से अतृप्त ही रहते हैं (अथवा उनका पार नहीं पा सकते, बीच में ही समाप्त हो जाते हैं) ।
THE FORM OF ALL RENOUNCING DHUT
184. In spite of knowing well this distressed world, abandoning earlier affiliations, acquiring the capacity to pacify karmas, accepting the ascetic way of living, truly knowing the conduct of the detatched (ascetic) as well as the attached (partially detatched or shravak), some ascetics, having tainted conduct, are unable to follow that ascetic discipline
आचारांग सूत्र
( ३२२ )
For Private Personal Use Only
* RO
Illustrated Acharanga Sutra
www.jainelibrary.org