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१८१. जो प्राणी अंधकार में रहते हैं व अन्धे कहे जाते हैं, वे प्राणी उसी ( विविध दुःखपूर्ण अवस्था) को एक या अनेक बार भोगकर तीव्र और मन्द ( ऊँचे-नीचे) स्पर्शो का अनुभव करते रहते हैं।
बुद्धों (तीर्थंकरों) ने इसका प्रतिपादन किया है। ( कर्मों की विविधता के कारण - ) अनेक प्रकार के प्राणी होते हैं। जैसे - वर्षज - ( वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाले मेंढक आदि), रसज - (रस) में उत्पन्न होने वाले ( कृमि आदि जन्तु), उदक रूप - एकेन्द्रिय अकायिक जीव, या जल में उत्पन्न होने वाले जलचर जीव, आकाशमागी - नभचर पक्षी आदि ।
प्राणी ( अपनी जीवन रक्षा आदि के लिए ) अन्य प्राणियों को कष्ट देते हैं । तू देख, लोक में महान् भय है।
संसार में जीवों को बहुत दुःख
बहुत से मनुष्य काम-भोगों में आसक्त रहते हैं । वे इस निर्बल एवं क्षणभंगुर शरीर को सुख देने के लिए अन्य अनेक प्रकार की व्यथाओं / पीड़ाओं को प्राप्त होते हैं ।
है।
वेदना से पीड़ित वह मनुष्य बहुत दुःखो रहता है। इसलिए वह अज्ञानी दूसरे प्राणियों को कष्ट देता है।
( इन पूर्वोक्त प्रकार के ) अनेक रोगों के उत्पन्न होने से आतुर मनुष्य ( उनकी चिकित्सा के लिए) दूसरे प्राणियों को परिताप देते हैं।
तू देख ! ये ( प्राणिघातक - चिकित्साविधियाँ कर्मोदय-जनित रोगों का शमन करने में ) समर्थ नहीं है। (अतः जीवों को परिताप देने वाली ) इन (चिकित्साविधियों) से तुमको दूर रहना चाहिए।
मुनिवर ! तू देख । यह जीव - हिंसा महान् भयरूप है। इसलिए भी किसी प्राणी का वध न करें।
181. The beings who live in darkness and are blind, they continue to experience sharp and mild touch (of pain) through suffering in the same (miserable) state once or frequently.
The Enlightened ones (Tirthankars) have propagated this. There are various types of beings (due to varieties of karmas). For example-varshaj or beings born due to rain, such as frogs; rasaj or beings born in liquids, such as bacteria and worms; udak or water-bodied one-sensed beings; udak-char or aquatic beings; akash-gami or birds; etc.
आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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