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life. Such people cannot get liberated from karmas, the root causes of miseries.
The first example is about the fallen ones who once had a vision of the truth. The second example is about the common householder entrapped in mundane attachments. स्वकृत कर्म-जनित कष्ट १८०. अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताए जाया
गंडी' अदुवा कोढी२ रायंसी३ अवमारियं । काणिय५ झिमियं६ चेव कुणियं खुज्जियं८ तहा।। उदरं च पास मूयं१० च सूणियं११ च गिलासिणिं१२। वेवई१३ पीढसप्पिं१४ च सिलिवयं१५ महुमेहणिं१६॥ सोलस एते रोगा अक्खाया अणुपुव्वसो।
अह णं फुसंति आयंका फासा य असमंजसा॥ मरणं तेसिं संपेहाए उववायं चयणं च णच्चा परिपागं च संपेहाए तं सुणेह जहा तहा।
१८0. अब तुम देखो, वे (मनुष्य) उन कुलों में आत्म-भाव-अपने-अपने कृत कर्मों के फलस्वरूप निम्नोक्त रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं
(१) गण्डमाला, (२) कोढ़, (३) राजयक्ष्मा (तपेदिक), (४) अपस्मार (मृगी या मूर्छा), (५) काणत्व (कानापन), (६) जड़ता (अंगोपांगों में शून्यता), (७) कुणित्व (-टापन, एक हाथ या पैर छोटा और एक बड़ा विकलांगता), (८) कुबड़ापन, (९) उदररोग (जलोदर, अफारा, उदरशूल आदि), (१०) मूकरोग (शृंगापन), (११) शोथरोग-सूजन, (१२) गिलासिनी-भस्मकरोग, (१३) वेपकी-कम्पनवात, (१४) पीठसी-पंगुता, (१५) श्लीपदरोग (हाथीपगा), और (१६) मधुमेह; ये सोलह रोग क्रमशः कहे गये हैं। इसके अनन्तर (शूल आदि मरणान्तक) आतंक। (दुःसाध्य रोग) और अनिष्टकारी स्पर्श प्राप्त होते हैं।
उन मनुष्यों की मृत्यु का विचार कर, उपपात (जन्म) और च्यवन (मरण) को जानकर तथा कर्मों के विपाक का भलीभाँति चिन्तन करके उसके (यथार्थ) स्वरूप को सुनो।
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आचारांग सूत्र
( ३१२ )
Illustrated Acharanga Sutra
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