________________
HANDARD
-
-
-
XXXCOMPONOSALYAYA NALALALALAL
उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया-उवेहाहि समियाए। इच्चेवं तत्थ संधी झोसिआ भवति। से उट्ठियस्स ठियस्स गई समणुपासह। एत्थ वि बालभावे अप्पाणं णो उवदंसेज्जा।
१७०. जिनवचन के प्रति श्रद्धा रखने वाला, सम्यक् आचारशील तथा सम्यक् प्रव्रज्या (संयम) वाला मुनि किसी आचार व्यवहार या तत्त्व विषय को सम्यक् मानता है और वास्तव में वह सम्यक् ही है। (१) वह किसी व्यवहार या तत्त्व को सम्यक् मानता है, किन्तु वास्तव में वह असम्यक् है। (२) वह किसी व्यवहार को असम्यक् मानता है किन्तु वास्तव में वह सम्यक् है। (३) तथा किसी व्यवहार को असम्यक् मानता है और वास्तव में वह असम्यक् है। (४) जो सम्यक् मानता है किन्तु व्यवहार वास्तव में सम्यक् हो या असम्यक् हो, परन्तु उत्प्रेक्षा (राग-द्वेषरहित तटस्थ भाव) के कारण वह सम्यक् होता है। जो असम्यक् मानता है, किन्तु वास्तव में वह सम्यक् हो या असम्यक्, किन्तु उत्प्रेक्षा (राग-द्वेष के कारण) वह असम्यक् ही होता है।
उत्प्रेक्षा (मध्यस्थभाव) रखने वाला, उत्प्रेक्षा नहीं रखने वाले से कहे-सम्यक् भाव की * प्राप्ति के लिए उत्प्रेक्षा करो।
इस प्रकार (मध्यस्थभाव के आलम्बन से) संधि (सम्यक्-असम्यक् की समस्या) का समाधान होता है।
तुम उत्थित-संयम में पुरुषार्थवान और अनुत्थित (संयम में शिथिल) की गति को
देखो। * तुम स्वयं को बालभाव (अज्ञान दशा) में प्रदर्शित मत करो (सतत ज्ञानवान बने रहो)।
JUDGMENT OF RIGHT AND WRONG
170. An ascetic having faith in the tenets of the Jina, following right conduct and observing right discipline believes
about some behaviour or concept that—(1) it is right and in a reality also it is right; (2) it is right but in reality it is not right;
(3) it is not right but in reality it is right; (4) it is not right and
in reality also it is not right. He who believes it to be right, See whether in reality it is right or wrong, (effectively) due to his * impartial attitude (absence of attachment and aversion) it is
*
आचारांग सूत्र
(२८८ )
Illustrated Acharanga Sutra
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org