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+ मुनिधर्म के सन्दर्भ में अपरिग्रह और काम-भोगों से उदासीन रहने का संदेश तीसरे उद्देशक
+ अपरिपक्व (अव्यक्त) साधु की एकचर्या में होने वाली हानियों का एवं दोषों का निर्देश चौथे
उद्देशक में किया है। + आचार्य की महिमा, सत्य श्रद्धा, सम्यक्-असम्यक्-विवेक, अहिंसा और आत्मा के स्वरूप का
वर्णन पाँचवें उद्देशक में है। - मिथ्यात्व, राग, द्वेष आदि के परित्याग का तथा आज्ञा-निर्देश एवं सिद्ध आत्मा के स्वरूप का निरूपण छठे उद्देशक में किया है।
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लोकसार : पंचम अध्ययन
( २३९ )
Lokasara : Fifth Chapter
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