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आमुख
आचारांग सूत्र के पंचम अध्ययन का नाम है- 'लोकसार'।
नाम, स्थापना आदि के भेद से 'लोक शब्द' के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। यहाँ पर लोक शब्द चौदह रज्जु प्रमाण लोक (क्षेत्र) तथा इस लोक में रहने वाले प्राणियों के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। 'सार' शब्द के भी अनेक अर्थ होते हैं - निष्कर्ष, निचोड़, तत्त्व, सर्वस्व, ठोस, प्रकर्ष, सार्थक आदि।
लोगसारो : पंचमं अज्झयणं लोकसार : पंचम अध्ययन
+ नियुक्तिकार ने लोक के सार के सम्बन्ध में प्रश्न किया है कि - "लोगस्स उ को सारो, तस्स य सारस्स को हवइ सारो। " - गुरुदेव ! इस लोक का सार क्या है और उस सार का भी सारतत्त्व क्या है ?
उत्तर में आचार्य कहते हैं -
आचारांग सूत्र
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लोक का सार धर्म है, धर्म का सार ज्ञान है, ज्ञान का सार संयम है और संयम का सार निर्वाण - मोक्ष है।
लोगस्स सारं धम्मो, धम्मं पि य नाणसारियं बिंति । नाणं संजमसारं, संजमसारं च निव्वाणं ॥ २२४ ॥
उक्त व्याख्या के अनुसार लोकसार अध्ययन का अर्थ हुआ - समस्त जीव लोक के सारभूत मोक्षादि तत्त्वों के सम्बन्ध में विचारणा व प्ररूपणा । लोक में सारभूत परमपद (परमात्मा, आत्मा और मोक्ष) के सम्बन्ध में साधक प्रेरणा प्राप्त करे। मोक्ष से विपरीत आसव, बन्ध, असंयम और मिथ्यादर्शन आदि का स्वरूप समझे । इनके परिणामों को भलीभाँति जानकर इनका त्याग करे यही इस अध्ययन का उद्देश्य है ।
लोकसार अध्ययन के ६ उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में मोक्ष के विपरीतगामी पुरुषार्थ, काम और उसके मूल कारणों - अज्ञान, मोह, राग-द्वेष आदि का विचार तथा उनके निवारण का उपाय निरूपित किया है।
दूसरे उद्देशक में अप्रमाद और परिग्रह- त्यागी को मुनि कहा है ।
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Illustrated Acharanga Sutra
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