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तइओ उद्देसओ
| तृतीय उद्देशक
LESSON THREE
[दूसरे उद्देशक में आम्रव, संवर तथा निर्जरा के विषय में बताने के पश्चात् पूर्व में बँधे हुए कर्मों की निर्जरा रूप तप का उपदेश प्रस्तुत उद्देशक में दिया गया है।]
[After describing asrava, samvar and nirjara in the second lesson, this third lesson mentions austerities as means of shedding already acquired karmas.] सम्यक् तप : कर्मक्षय-विधि १४१. उवेह एणं बहिया य लोग। से सव्वलोगंसि जे केइ विण्णू। अणुवीइ पास णिक्खित्तदंडा; जे केइ सत्ता पलियं चयंति। नरा मुयच्चा धम्मविउ त्ति अंजू। आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा। एवमाहु सम्मत्तदंसिणो। ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति। इइ कम्मं परिण्णाय सव्वसो।
१४१. ये जो अहिंसा से विमुख हैं या धर्म से बाहर हैं, तू उनकी उपेक्षा कर मध्यस्थ भाव रख। (जो ऐसा करता है) वह समस्त लोक में विद्वानों में अग्रणी है। __तू चिन्तन करके देख, जिन्होंने दंड-हिंसा या आरंभ का त्याग कर दिया है, वे ही कर्मों को क्षीण (पलित) करते हैं। ___ जो पुरुष मृतार्च अर्थात् देह की आसक्ति से मुक्त है, वह धर्म को जानता है; जो धर्म को जानता है वह ऋजु-सरल होता है।
संसार में जो भी दुःख हैं, वह हिंसा से उत्पन्न हैं, ऐसा समत्वदर्शी प्रवचनकारों ने कहा है-यह जानकर (हिंसा का त्याग करें।)
वे सभी प्रवचनकार दुःख की परिज्ञा-विवेक का प्रतिपादन करने में कुशल होते हैं, इसलिए वे कर्म को सब प्रकार से जानकर उसका त्याग करते हैं। RIGHT AUSTERITIES : THE PROCESS OF SHEDDING KARMAS __- 141. You should ignore them who are against ahimsa or do not conform to religion and remain in different towards them. He (who does this) is the leader of all the scholars in this world. सम्यक्त्व : चतुर्थ अध्ययन
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Samyaktva : Forth Chapter
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