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sasterivomorrormorroroPADMADHYPROPRIOSAROSAROSAROSAROPARDARODARPARODARPARAPARACHQAQAQAONTAR
I say—This is an evident reality that it is not possible that a being will never die.
Still some persons, driven by the desire for mundane pleasures, continue to be the nucleus of perversion. Even when they are in the jaws of death (or procrastinating when they get an opportunity to follow the religious path) they continue to be engrossed in accumulating wealth and karmas.
Such persons are reborn again and again in numerous genuses.
विवेचन-आस्रव का सामान्य अर्थ है-“काय-वाङ् मनःकर्मयोगः स आनवः।"-काया, वचन और मन की शुभाशुभ क्रिया-प्रवृत्ति योग कहलाती है, वही आस्रव है।
हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह में प्रवृत्ति अशुभ कायास्रव है और इनसे विपरीत शुभ आशय से की जाने वाली प्रवृत्ति शुभ कायास्रव है।
आस्रव के पाँच भेद हैं-(१) हिंसा, (२) असत्य, (३) चोरी, (४) मैथुन, और (५) परिग्रह।
दूसरी दृष्टि से पाँच भेद इस प्रकार हैं-(१) मिथ्यात्व, (२) अविरति, (३) प्रमाद, 9 (४) कषाय, और (५) योग।
अतः आस्रव की परिभाषा हैं-आठ प्रकार के शुभाशुभ कर्म जिन मिथ्यात्वादि स्रोतों से आते हैं-आत्म-प्रदेशों के साथ एकमेक हो जाते हैं, उन स्रोतों को आसव कहते हैं। ___ आस्रव और बन्ध के कारणों में कोई अन्तर नहीं है। कर्म-स्कन्धों का आगमन आम्रव कहलाता है और कर्म-स्कन्धों के आगमन के बाद उन कर्म-स्कन्धों का जीव (आत्म) प्रदेशों में स्थित हो जाना बन्ध है। इस दृष्टि से आस्रव को बन्ध का कारण कहा जा सकता है।
जिन क्रियाओं से कर्म चारों ओर से गल या बह जाता है, उसे परिम्नव कहते हैं। नव-तत्त्व की भाषा में इसको 'निर्जरा' कह सकते हैं। ___ सामान्य पुरुष के लिए जो आस्रव के, कर्मबन्धन के स्थान हैं, वे ही ज्ञानी पुरुष के लिए परिस्रव-कर्मनिर्जरा के स्थान हो जाते हैं। इसका आशय यह है कि विषय-सुखाभिलाषी मनुष्यों के लिए जो स्त्री, वस्त्र, अलंकार, शय्या आदि पौद्गलिक सुख के साधन, कर्मबन्ध के हेतु होने से आस्रव हैं, वे ही पदार्थ विषय-सुखों के विरक्त साधकों के लिए आध्यात्मिक चिन्तन का आधार बनकर परिस्रव-कर्मनिर्जरा के स्थान बन जाते हैं। जो कर्मनिर्जरा के स्थान हैं, वे ही असम्बुद्ध-अज्ञानी प्राणियों के लिए कर्मोदयवश, अहंकार आदि अशुभ अध्यवसाय के कारण
ऋद्धि-रस-साता के गर्ववश आस्रव रूप-कर्मबन्ध हो जाते हैं। * आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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