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बीओ उद्देसओ
द्वितीय उद्देशक
LESSON TWO
[प्रथम उद्देशक में सम्यक् श्रद्धा का विवेचन करने के बाद इस द्वितीय उद्देशक में सम्यग्ज्ञान का वर्णन करके बताया है - संसार से मुक्त होने का कारण संवर और निर्जरा है। अतः साधक इस बात का ज्ञान करे कि किस भावना से आम्रव - कर्मबंध होता है और किस भावना से निर्जरा - कर्ममुक्ति ।]
[After discussing right faith (perception) in the first lesson, right knowledge (samyak-jnana) has been detailed in this second lesson. The means of liberation from this world are samvar (blocking the inflow of karmas) and nirjara (shedding the already acquired karmas). Therefore the seeker should know that what is it that causes the inflow of karmas (bondage of karmas) and what results in liberation from karmas.]
आस्रव -परिस्रव चर्चा
१३५. (१) जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा । जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा ।
एए पए संबुज्झमाणे लोगं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो पवेइयं ।
(२) आघाइ णाणी इह माणवाणं संसारपडिवण्णाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं । अट्टावि संता अदुवा पमत्ता ।
अहासच्चमिणं ति बेमि नाऽणागमो मच्चुमुहस्स अत्थि ।
इच्छापणीता वंकाणिकेया । कालग्गहीया णिचये णिविट्ठा । पुढो जाई पकप्पयंति।
१३५. (१) जो आस्रव (कर्मबन्ध के स्थान ) हैं, वे ही परिस्रव (कर्मनिर्जरा के स्थान बन जाते हैं। जो परिस्रव हैं, वे आस्रव हो जाते हैं।
जो अनानव ( व्रत विशेष) हैं, वे भी ( अशुभ अध्यवसाय वाले के लिए ) अपरिस्रव (कर्म के कारण हो जाते हैं। (इसी प्रकार ) जो अपरिस्रव - पाप के कारण हैं, वे भी (कदाचित् ) अनास्रव (कर्मबंध के कारण नहीं) होते हैं ।
इन पदों (भंगों - विकल्पों) को सम्यक् प्रकार से समझकर तीर्थंकरों की आज्ञा के अनुसार लोक का (कर्मबंध एवं निर्जरा का) पृथक्-पृथक् कथन किया है।
आचारांग सूत्र
( २१२ )
Illustrated Acharanga Sutra
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