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पढमो उद्देसओ
प्रथम उद्देशक
LESSON ONE
[साधना का मूल आधार है सम्यक्त्व-सम्यक् श्रद्धा। श्रद्धा सम्यक् होने पर ही चारित्र, तप आदि की साधना सार्थक होती है। अतः इस प्रथम उद्देशक में श्रद्धा किस प्रकार करनी चाहिए? इसी प्रश्न का समाधान किया गया है।]
[The basis of samyaktva is right faith. Only when faith is right the pursuit of conduct and austerities hears fruits. Therefore this first lesson provides answer to the question-How to have right faith ?] अहिंसा की सार्वभौमता
१३३. से बेमि-जे य अईया, जे य पडुप्पण्णा, जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंता । ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा, - सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेत्तव्वा,
ण परियावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा। ___एस धम्मे सुद्धे निइए सासए समेच्च लोय खेयण्णेहिं पवेइए। तं जहा
उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा - अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा असंजोगरएसु वा।
___ १३३. मैं कहता हूँ-जो अर्हत् अतीत में हुए हैं, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में Ho होंगे, वे सब ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसी प्रज्ञापना करते हैं, ऐसी प्ररूपणा
करते हैं-समस्त प्राणियों, सर्वभूतों, सभी जीवों और सभी सत्त्वों का हनन नहीं करना चाहिए, बलपूर्वक उन पर शासन नहीं करना चाहिए, उन्हें दास नहीं बनाना चाहिए, उन्हें परिताप नहीं देना चाहिए और उनके सत्त्व का विनाश नहीं करना चाहिए। ___ यह (अहिंसा) धर्म शुद्ध, नित्य और शाश्वत है। खेदज्ञों-(अर्हतों) ने लोक को सम्यक् Ma प्रकार से जानकर इसका प्रतिपादन किया है।
(अर्हतों ने) इस धर्म का उन सब के लिए प्रतिपादन किया है जो उठे हैं, अथवा अभी Ma नहीं उठे हैं; जो उपस्थित हुए हैं या नहीं हुए हैं; जो जीवों की हिंसा से उपरत हैं अथवा
अनुपरत हैं; जो उपधि से युक्त हैं, अथवा उपधि से रहित हैं; जो संयोगों में रत हैं, अथवा संयोगों में रत नहीं हैं।
आचारांग सूत्र
( २०४ )
Illustrated Acharanga Sutra
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