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दुक्खं लोयस्सं जाणित्ता, वंता लोगस्स संजोगं। जंति वीरा महाजाणं। परेण परं जंति, णावकंखंति जीवियं। एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढो विगिंचमाणे एगं विगिंचइ। सड्ढी आणाए मेहावी। लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं। . अत्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण परं।
१३०. जो एक को जानता है, वह सब को जानता है। जो सबको जानता है, वह एक को जानता है। प्रमत्त को सब ओर से भय होता है, अप्रमत्त को कहीं से भी भय नहीं होता।
जो एक को नमाता है, वह बहुतों को नमाता है। जो बहुतों को नमाता है, वह एक को नमाता है।
लोक के दुःख को जानकर (उसके हेतु कषाय का त्याग करे।) वीर साधक लोक के(संसार के) संयोग-ममत्व-सम्बन्धों का परित्याग कर महायान-मोक्षपथ को प्राप्त करते हैं। __ वे आगे से आगे बढ़ते जाते हैं, उत्तरोत्तर विशुद्धि प्राप्त करते हैं। उन्हें फिर असंयमी जीवन की आकांक्षा नहीं रहती। ___ एक-(अनन्तानुबंधी कषाय) को (जीतकर) पृथक् करने वाला, अन्य (कर्मों) को भी (जीतकर) पृथक् कर देता है। अन्य को पृथक् करने वाला, एक को भी पृथक् कर देता है।
वीतराग की आज्ञा में श्रद्धा रखने वाला मेधावी होता है। __ जो साधक जिनेश्वर देव की आज्ञा-वाणी के अनुसार लोक को जानकर विषयों का त्याग कर देता है, वह अकुतोभय-पूर्ण अभय हो जाता है।
शस्त्र (असंयम) एक से एक बढ़कर तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर होता है किन्तु अशस्त्र (संयम) एक से एक बढ़कर नहीं होता। ____130. He who knows one, knows all. He who knows all, knows the one.
He who is in stupor is in danger. He who is alert is free of any danger from any direction. ___He who conquers one, conquers all. He who conquers all, conquers one. आचारांग सूत्र
( १९४ )
lustrated Acharanga Sutra
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