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___That which is himsa (violence) is the root of karma, therefore after properly examining it one should abstain from it.
After properly examining all this one should remain untouched (away) from both the ends (attachment and aversion).
The wise should understand attachment and aversion (etc.) (through awareness of knowledge he should know them and through awareness of detachment he should abandon them).
Understanding the world of attachment and aversion, that sagacious seeker should cast off the awareness (desire) of the world and pursue the conduct of discipline.
-So I say. विवेचन-कर्म और उसके संयोग से होने वाली आत्मा की हानि तथा कर्म के उपादान (राग-द्वेष) आदि को भलीभाँति जानकर उसका त्याग करने का निर्देश इन सूत्रों में किया है। कर्मों के बीज-राग और द्वेष रूप दो अन्तों का परित्याग करके (विषय-कषायरूप) लोक को जानकर लोक-संज्ञा-आसक्ति को छोड़कर संयम में उद्यम करने की प्रेरणा दी है।
अकम्मस्स-जो अकर्म अर्थात् सर्वथा कर्ममुक्त हो जाता है, उसके लिए नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव, बाल, वृद्ध, युवक, पर्याप्तक, अपर्याप्तक आदि कुछ भी व्यवहार (संज्ञाएँ) नहीं होता। __ जो कर्मयुक्त है, उसके लिए ही कर्म को लेकर नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य आदि की या एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक की, मन्द बुद्धि, तीक्ष्ण बुद्धि, स्त्री-पुरुष आदि उपाधि-व्यवहार या विशेषण होता है। इन सब विभाजनों-विभेदों और व्यवहारों का हेतु कर्म है, इसलिए कर्म ही उपाधि का कारण है। ___ चूर्णिकार ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है-कर्म से उपधि होती है। उपधि तीन प्रकार की है-आत्मोपधि, कर्मोपधि और शरीरोपधि। जब आत्मा विषय-कषायादि में दुष्प्रयुक्त होता है, तब आत्मोपधि-आत्मा परिग्रह रूप होता है। तब कर्मोपधि का संचय होता है और कर्म से शरीरोपधि होती है। शरीरोपधि से लेकर नैरयिक, मनुष्य आदि व्यवहार (संज्ञा) होता है। ___ 'कम्मं च पडिलेहाए' का तात्पर्य है-कर्म का समग्र स्वरूप जानकर कर्मों को क्षय करने का प्रयत्न करना चाहिए।
कर्मबन्ध के मूल कारण पाँच हैं-(१) मिथ्यात्व, (२) अविरति, (३) प्रमाद, (४) कषाय, और (५) योग। इन कर्मों के मूल का विचार करे। 'क्षण' का अर्थ क्षणन-हिंसा है, इसका एक अर्थ यह भी होता है-कर्म का मूल हिंसा है अथवा हिंसा का मूल कर्म है। दोहिं अंतेहिं-दो अन्त अर्थात् किनारे हैं-राग और द्वेष। इनको भली प्रकार जाने। आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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