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(weapon)" also knows what is discipline. The knowledge of discipline and that of indiscipline are interdependent. Thus by knowing one well the other also becomes known.
लोक-संज्ञा का त्याग
१११. अकम्मस्स ववहारो ण विज्जइ । कम्मुणा उवाही जाय ।
११२. कम्मं च पडिलेहाए।
कम्ममूलं च जं छणं पडिलेहिय ।
सव्वं समायाय दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे । तं परिण्णाय मेहावी । विइत्ता लोगं वंता लोगसण्णं से मइमं परक्कमेज्जासि ।
त्ति बेमि ।
॥ पढमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥
१११. अकर्म (कर्मों से मुक्त शुद्ध आत्मा) के लिए कोई (लोक) व्यवहार नहीं होता । कर्म से उपाधि होती है।
११२. कर्म का सम्यक् प्रकार से विचार करके उसे नष्ट करने का प्रयत्न करे ।
जो हिंसा है, वही कर्म का मूल है - उसका भलीभाँति निरीक्षण करके परित्याग करे । इन सब का सम्यक् निरीक्षण करके दोनों (राग और द्वेष ) अन्तों से अदृश्य (दूर) होकर रहे।
मेधावी राग-द्वेषादि को ज्ञात करके (ज्ञ-परिज्ञा से जाने और प्रत्याख्यान - परिज्ञा से छोड़े) । वह मतिमान् साधक इस राग-द्वेषरूप लोक को जानकर लोक-संज्ञा का त्याग करे तथा संयमानुष्ठान में पराक्रम करे।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
LEAVING THE AWARENESS OF THE WORLD
111. One who is free of karma is also free of mundane behaviour.
It is karma that leads to appellations.
112. One should properly ponder over karma and try to destroy it.
शीतोष्णीय : तृतीय अध्ययन
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Sheetoshniya: Third Chapter
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