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न ९५. जो मैं कहता हूँ तुम उसे जानो और धारण करो।
__ स्वयं को चिकित्सा-पंडित बताते हुए वह (वैद्य) चिकित्सा (काम-चिकित्सा) में प्रवृत्त होता है। वह (काम-चिकित्सा के लिए) अनेक जीवों का हनन, भेदन, लुम्पन, विलुम्पन
और प्राण-वध करता है। “जो अभी तक किसी ने नहीं किया, ऐसा काम मैं करूँगा।" यह * मानता हुआ (वह जीव-हिंसा करता है)। वह जिसकी चिकित्सा करता है (वह भी * जीव-हिंसा में सम्मिलित होता है)।
____ अज्ञानी (जो हिंसा-प्रधान चिकित्सा करने वाला है) की संगति से क्या लाभ है ! जो ऐसी चिकित्सा करवाता है, वह भी बाल-अज्ञानी है।
अनगार ऐसी चिकित्सा नहीं करवाता।
-ऐसा मैं कहता हूँ। CENSURING FAULTY TREATMENT
95. Know and understand (absorb) what I say. Claiming himself to be the master of medicine he (doctor) offers cure (for carnal desires). He kills, pierces, chases, displaces and destroys many beings (for this purpose). He resolves that “I will do what no one has done” (and indulges in violence). His patient too (joins him in violence).
What is the benefit of the company of such ignorant (the healer who employs violent methods) ? He who goes for such cure is also ignorant.
An ascetic does not resort to such cure.
-So I say. विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में हिंसा-जन्य चिकित्सा का निषेध है। आचार्य श्री आत्माराम जी म. के कथनानुसार-पिछले सूत्रों में काम (विषयों) का वर्णन आने से यहाँ यह भी संभव है कि काम-चिकित्सा को लक्ष्य कर ऐसा कथन किया गया है। काम-वासना की तृप्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रकार की रासायनिक औषधियों का (वाजीकरण-उपवृंहण आदि के लिए) सेवन करता है, मरफिया आदि के इन्जेक्शन लेता है, शरीर के अवयव जीर्ण व क्षीणसत्त्व होने पर अन्य 'पशुओं के अंग-उपांग-अवयव लगाकर काम-सेवन की शक्ति को बढ़ाना चाहता है। उसके निमित्त
वैद्य-चिकित्सक अनेक प्रकार की जीव-हिंसा करते हैं। चिकित्सक और चिकित्सा कराने वाला
दोनों ही इस हिंसा के भागीदार होते हैं। इस प्रकार की औषधियों से काम की चिकित्सा के नाम * पर काम-वृद्धि ही होती है। वास्तव में काम का उदय मोह-कर्म के कारण होता है, मोह-कर्म का * आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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