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Apadinne or apratijna-One who does not nurture mundane aspirations under the influence of passions, attachment and aversion. According to the commentator (Churni, page 79) an ascetic who seeks alms not only for himself but also for his guru and fellow ascetics is called apratijna.
Apratijna also indicates that a Shraman should be free of any bias or dogma. He should be aware of the procedures and prohibitions as also of the ideal nd exceptions. वस्त्र, पात्र, आहार-संयम
९०. वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं। एतेसु चेव जाएज्जा। लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा। से जहेयं भगवया पवेइयं। लाभो त्ति न मज्जेज्जा, अलाभो त्ति ण सोएज्जा। बहु पि लद्धं ण णिहे। परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा। अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि। त्ति बेमि।
९0. (संयमी) ऐसे वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद प्रोंछन (पाँव पोंछने का वस्त्र), अवग्रहस्थान और कटासन-चटाई आदि की याचना करे जोकि गृहस्थ के लिए निर्मित हों। शुद्ध हों।
भगवान ने जो विधि बताई है उसके अनुसार, आहार प्राप्त होने पर, उसकी मात्रा का ज्ञान रखना चाहिए।
इच्छानुसार आहार आदि प्राप्त होने पर (अपने प्रभाव व लब्धि का) मद-अहंकार नहीं करे। यदि प्राप्त न हो तो शोक (चिन्ता) न करे।
अधिक मात्रा में प्राप्त होने पर उसका संग्रह न करे। परिग्रह से अपने को दूर रखे।
(गृहस्थ जिस प्रकार वस्तु को ममत्वभाव से देखते हैं, उस प्रकार न देखे) अन्यथा प्रकार से देखे व भोगे। ___ यह (अनासक्ति का) मार्ग आर्य-तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित है। राल पुरुष परिग्रह में लिप्त न हो।
-ऐसा मैं कहता हूँ। आचारांग सूत्र
( ११८ ) Illustrated Acharanga Sutra
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