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For themselves and for son, daughter, daughter-in-law, kinfolk, governess, king, slaves, employees, guests and other such people. For giving gifts to other people and for morning and evening meals.
Thus they collect and accumulate for providing food to some people.
८९. समुट्ठिए अणगारे आरिए आरियपणे आरियदंसी अयं संधी ति अदक्खु । से णाइए, णाइआवए, न समणुजाणए ।
सव्वामगंधं परिण्णाय णिरामगंधी परिव्वए ।
अदिस्समाणे कय- विक्कए । से ण किणे, ण किणावए, किणतं ण समणुजाण । सेभिक्खू कालणे, बलण्णे, मायण्णे, खेयण्णे, खणयण्णे, विणयण्णे, समयण्णे, भावणे।
परि
अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे । दुहओ छेत्ता नियाइ ।
८९. संयम में प्रवृत्त आर्य, आर्यप्रज्ञ ( निर्मल बुद्धि) और आर्यदर्शी (सत्य को देखने वाला) अनगार प्रत्येक क्रिया उचित समय पर ही करता है । वह 'यह भिक्षा का उचित समय - संधि ( अवसर) है' यह देखकर ( भिक्षा के लिए) जाये ।
( आसक्ति की वृद्धि करने वाले) सदोष आहार को मुनि स्वयं ग्रहण न करे, दूसरों से ग्रहण न करवाए तथा ग्रहण करने वाले की अनुमोदना नहीं करे।
अनगार सब प्रकार के आमगंध ( दोषयुक्त आहार या आसक्ति) का परित्याग करता हुआ निर्दोष आहार के लिए परिव्रजन ( भिक्षाचरी) करे।
वह आहार के लिए वस्तु के क्रय-विक्रय में लिप्त न हो । न तो स्वयं वस्तु का क्रय करे, न दूसरों से करवाए और न करने वाले का अनुमोदन करे ।
उक्त आचार का पालन करने वाला भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है।
परिग्रह की ममता नहीं रखने वाला, समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है। वह दोनों (राग और द्वेष) का छेदन कर अनासक्तिपूर्वक जीता है।
89. A disciplined ascetic who is noble (arya) and has pure intellect (arya-prajna) and perception (arya- drishta ) does every लोक-विजय : द्वितीय अध्ययन
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Lok Vijaya: Second Chapter
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