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अलोभ से लोभ पर विजय
७२. विमुक्का हु ते जणा जे जणा पारगामिणो। लोभमलोभेण दुगुंछमाणे लद्धे कामे णाभिगाहइ। विणा वि लोभं निक्खम्म एस अकम्मे जाणइ पासइ। पडिलेहाए णावकंखति। एस अणगारे त्ति पवुच्चइ। ७२. जो विषयों के पार चले जाते हैं, वे विमुक्त हैं।
अलोभ (संतोष) से लोभ को पराजित कर साधक काम-भोग प्राप्त होने पर भी उनका सेवन नहीं करता। . जो लोभ से निवृत्त होकर प्रव्रज्या लेता है, वह अकर्मा अर्थात् कर्मावरण से मुक्त होकर सब-कुछ जानता है, देखता है। ___ अनगार उसी को कहा जाता है जो विषय-कषायों आदि के परिणाम का विचार कर उनकी आकांक्षा नहीं करता। VICTORY OVER GREED
72. Those who rise above mundane pleasures are the liberated ones.
By defeating greed with contentment a seeker desists from indulging in mundane pleasures even when he has an opportunity.
He who gets initiated after getting free of greed, comes out of the veil of karmas and sees and knows everything.
Only he is called anagar (ascetic) who, considering the consequences of mundane indulgence and passions, desists from any desire for the same.
विवेचन-अलोभ से लोभ को जीतना यह प्रतिपक्ष भावना का सिद्धान्त है। आचार्यों ने कहा है-- "जैसे आहार-परित्याग करना ज्वर की औषधि है, वैसे ही लोभ-परित्याग (संतोष) करना तृष्णा की औषधि है।" चूर्णिकार ने यहाँ प्रश्न उठाया है-"ते पुण कहं पारगामिणो।"-वे पार कैसे पहुँचते है ? "भण्णति-लोभं अलोभेण दुगुंछमाणा।"-लोभ को अलोभ से जीतता हुआ पार पहुँचता है। ____ आचार्य शीलांक कृत टीका में 'विणा वि लोभं' के स्थान पर 'विणइत्तु लोभ' पाठ भी है। चूर्णिकार ने 'विणा वि लोभं' पाठ दिया है। दोनों पाठों से यह भाव ध्वनित होता है कि जो आचारांग सूत्र
Mustrated Acharanga Sutra
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