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He who does not use weapons on mobile-bodied beings is het free of these sins.
62. Therefore knowing about this (the unexpressed sufferings of beings) one (the wise man) should not harm airbodied beings himself, neither make others do so, nor approve of others doing so.
He who has properly understood the violence related to the air-bodied beings is a parijnat-karma muni (a discerning sage or an ascetic who with a discerning attitnde abandons violence). __-So I say. विरति-बोध
६३. एत्थंपि जाण उवादीयमाणा, जे आयारे ण रमंति। आरंभमाणा विणयं वयंति। छंदोवणीया अज्झोववण्णा आरंभसत्ता पकरेंति संग। से वसुमं सव्वसमण्णागयपण्णाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं णो अण्णेसिं।
तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं छज्जीवणिकायसत्थं समारंभेज्जा. णेवऽण्णेहि छज्जीवणिकायसत्थं समारंभावेज्जा, वऽण्णे छज्जीवणिकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा।
जस्सेते छज्जीवणिकायसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे। त्ति बेमि।
॥ सत्तमो उद्देसओ सम्मत्तो ॥
॥ सत्थ परिण्णा : पढम अज्झयणं सम्मतं॥ ६३. इस प्रसंग में तुम जानो ! जो साधु इन्द्रिय-विषय आसक्ति की भावना से बँधे हुए हैं वे आचार में रमण नहीं करते। वे स्वयं आरंभ करते हुए भी दूसरों को संयम का
उपदेश करते हैं। ___ वे स्वच्छन्दाचारी और विषयों में आसक्त होते हैं। वे आरम्भ में आसक्त रहते हुए,
पुनः-पुनः कर्म का संग-बन्धन करते हैं। ___जो वसुमान् (ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप रत्न से युक्त मुनि) समस्त विषयों को ग्रहण करने वाली सत्यग्राही प्रज्ञा से युक्त है; वह अपने अन्तःकरण से पापकर्म को अकरणीय मानता
हुआ उस विषय में मन से चिन्तन भी न करे। 9 आचारांग सूत्र
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Illustrated Acharanga Sutra
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