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सत्तमो उद्देसओ
सप्तम उद्देशक
आत्म-तुला-विवेक
५७. पहू एजस्स दुर्गुछणाए । आयंकदंसी अहियं ति णच्चा ।
जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ । जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाण । एवं तुलमण्णेसिं
इह संतिया दविया णावकंखति जीवितं ।
५७. संयमी पुरुष वायुकायिक जीवों की हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ हो जाता है। क्योंकि वह हिंसा में आतंक देखता है और उसे अहितकारी मानता है ।
LESSON SEVEN
जो अध्यात्म ( अन्तर् जगत् ) को जानता है, वह बाह्य (संसार) को भी जानता है । जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। इस तुला का अन्वेषण कर, चिन्तन
कर !
इस (जिनशासन) में (जो मुनि) शान्ति को प्राप्त - ( कषाय जिनके उपशान्त हो गये हैं) और द्रविक–दयार्द्र हृदय वाले हैं, वे वायुकायिक जीवों की हिंसा करके जीना नहीं चाहते।
COMPARISON WITH SELF
57. A disciplined person becomes capable of abandoning violence against air-bodied beings, because he sees terror in violence and considers it harmful.
He who knows the inner self (spirituality) knows the outer (world). He who knows the outer (world) knows the inner self (spirituality). Explore this comparison with self, ponder over this !
Those (ascetics) who have found peace (pacified their passion) in this (Jain order) and are filled with clemency, do not wish to live by killing air-bodied beings.
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विवेचन - जहाँ-जहाँ प्राणियों की प्रवृत्ति होती है वहाँ सर्वत्र वायु व्याप्त है। इसलिए यह जिज्ञासा उठती है कि क्या वायुकायिक जीवों की हिंसा से बच पाना शक्य है ? इस जिज्ञासा का समाधान इन सूत्रों में दिया गया है कि मनुष्य वायुकाय की हिंसा से बच सकता है।
शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन
६९ )
Shastra Parijna: Frist Chapter
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