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EXTRACTS FROM MANUSCRIPTS
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तत्थट्टिएण सिरिचंद सूरिणा विरइयं इमं चरियं ॥ 88 सिरिमुणिमुव्त्रयतित्थंकरस्त समयानुसारण ॥ ८७॥ जं किंपि इह अजुत्तं उत्तं मइमोहउ मए अस्थि । तं सुहरा कयकिच्चा मज्झ विसोहंतु सव्वंपि ॥ ८८ ॥ पड्डियपोथियलिहणे गणिणा कयमत्थ पासदेवेण ॥ बहु साहेज्ज उज्जमपरेण वरमइनिहाणेण ॥ ८९ ॥ अवहरिसरणयाणं कणिदृभाया तहेव जसराउ | साहेज्जकरो उच्छाहम्मय जाउ रिसेसेण ॥ ९० विक्कमकालाउ एगवीस सहस्ते सए सावणउ ॥ तव्वयणंतर दीवसव्वदिणम्मि एयं परिसमत्तं ॥ ९१ ॥ एत्थ य पढमं पुत्थइमभिलिहियं देवरायकरसिस्से || -मयवतणएण लेहरण विणीण ॥ ९२ ॥ गाहानाणं संखाय जस्स दसहाति नवसयाई व ॥ चउणवइस महियाई नेयाई एत्थ गंथनि ॥ ९३ ॥ बासे जाविह भारहग्मि विमले सव्वण्णुणे सासणं कुज्जा भव्वजणोह मोहसमिसव्वरे समित्ता नाणसबसे । - मुणि सुव्वयस्स चरियं साणु नहु साहुगो वक्खाणंतु सुणंतु सव्वनिवहा एकग्गचित्ता सया ॥ ९४ ॥ १०९९४ ॥ श्री श्री चंद्रसूरिविरचितं श्री मुनिसुव्रतस्वामिचरितं समाप्तम् || शुभं भवतु ॥
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